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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
अञ्चलिका इच्छामि भंते ! चारित्त- भत्ति काउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउ, सम्मणाण-जोयस्स, सम्मत्ताहिडियस्स, सध्य-पहाणस्स, णिव्याण मग्गस्स, कम्म-गज्जार-फलस्स, खमा-झारस्स, पंछ-महब्धय-संपण्णस्स, तिगुत्ति. गुत्तस्स, पंच समिदि-जुत्तस्स, णाण-ज्झाण-साहणस्स, समया इव पवेसयस्स, सम्मचारित्तस्स, णिच्चकालं अच्चेमि, पुज्जेमि, वंदामि, णमस्सामि, दुक्खयखओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइ-गमणं, समाहिमरणं, जिणगुण-संपत्ति होदु मज्झं ।
वृहद् आलोचना विशेष— [ श्री गौतमस्वामी मुनियों के दुष्यमकाल में दुष्ट परिणामों से प्रतिदिन होने वाले व्रती में दोषों की आलोचना या अतिचारों की विशुद्धि के लिये दिनों की गणनापूर्वक आलोचना लक्षण उपाय को बताते हुए लिखते है 1]
[इच्छामि भंते ! अट्ठमिम्मि आलोचेडे, अट्ठण्हं दिवसाणं, अट्ठण्हं राइणं, अभंतरदो, पंचविहो आयारो णाणायारो, दंसणायारो, तवायारो वीरियायारो, चारित्तायारो चेदि ।।१।। __ अन्वयार्थ---( भंते ) हे भगवन् ! (पाणायारो ) ज्ञानाचार ( दंसणायारो ) दर्शनाचार ( वीरियायारो ) वीर्याचार ( तवायारो ) तपाचार ( च ) और ( चरिनायारो ) चारित्राचार ( इदि ) इस प्रकार ( आयारो पंचविहो ) पाँच प्रकार का आचार है ( अट्ठण्हं दिवसाणं ) आठ दिन और ( अट्ठण्हं राईणं ) आट गत्रि के ( अभंत्तराओ ) भीतर ( अट्ठमिम्मि ) आठ दिनों में ज्ञानाचार आदि में जो अतिचार लगा है, तत्संबंधी ( आलोचेउं ) आलोचना करने की ( इच्छामि ) मैं इच्छा करता हूँ।
[इच्छामि भंते ! पक्खियम्मि आलोचेउं पण्णरसण्हं दिवसाणं, पण्णरसह राइणं, अभंतरदो, पंचविहो आयारो, णाणायारो, दंसणायारो, तवायारो, वीरियायारो चरित्तायारो चेदि ।।२।।]
अन्वयार्थ ( भंते ) हे भगवन् ( पक्खियाम्म ) पाक्षिक अर्थात् १५