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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका दान, व्रत, उपवास आदि के द्वारा जिनशासन का माहात्म्य प्रकट न करके अप्रभावना से दर्शनाचार के परिहापन संबंधी जो दोष लगा हो ( तस्स ) तत्संबंधी ( मे ) मेरा ( दुक्कडं ) दुष्कृत ( मिन्छा ) मिथ्या हो अर्थात् दर्शनाचार को दूषित करने वाले मेरे सभी पाप मिथ्या हो।
तवायारो बारसविहो अब्मंतरो- छव्यिहो, बाहिरो-छविहो चेदि । तत्य बाहिरो अणसणं, आमोदरियं, वित्ति- परिसंखा, रस-परिच्चाओ, सरीर-परिच्चाओ, विवित्त-सयणासणं चेदि । तत्थ अबभतरो पायच्छित्तं, विणओ, वेज्जावच्चं, सज्झाओ, झाणं, विउस्सग्गो चेदि । अभंतरं बाहिरं बारसविहं- तवोकम्मं, ण कदं, जि. सोम पडिता विनायो दुक्कडं ।।३।।
अन्वयार्थ (बारसविहो तवायारो ) बारह प्रकार का तपाचार है { अब्भतरो छव्चिहो ) छह प्रकार का आभ्यंतर तप ( च ) और ( छव्विहो ) छह प्रकार का ( बाहिरो ) बाह्य तप ( तत्थ ) उसमें ( बाहिरो अणसणं ) बाह्य-अनशन ( अमोदरियां ) अवमौदर्य, (वित्तिपरिसंख्या ) वृत्तिपरिसंख्यान ( रस-परिच्चाओ) रस परित्याग ( सरीरपरिच्चाओ) कायक्लेश ( च ) और ( विवित्तसयणासण ) विविक्त शयनासन ( इदि ) इस प्रकार ( तत्थ अब्भतरो ) तथा आभ्यंतर तप ( पायच्छित्तं ) प्रायश्चित्त ( विणओ ) विनय ( वेज्जावच्चं ) वैय्यानात ( सज्झाओ) स्वाध्याय ( झाणं ) ध्यान ( च ) और ( विउस्सग्गो ) व्युत्सर्ग ( इदि ) इस प्रकार | { अब्भंतरं-बाहिरं ) बाह्य और अभ्यंतर ( बारसविहं ) बारह प्रकार का ( तवोकम्मं ) तप:कर्म ( णिसण्णेण पडिक्कंत ) परीषह आदि के द्वारा पीड़ित होने से छोड़ दिया हो । ण कंद ) नहीं किया हो ( तस्स ) उस बारह प्रकार के तप के परिहापन संबंधी ( दुक्कडं मे ) मेरे दुष्कृत ( मिच्छा ) मिथ्या हों।
वीरियायारो पंचविहो परिहाविदो वर-वीरिय- परिक्कमेण, जहुत्तमाणेण, बलेण, वीरिएण, परिक्कमेण णिगूहियं, तवो-कम्म, ण कदं, णिसपणेण पडिक्कतं तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।४।।
अन्वयार्थ-( वोरियायारो ) वीर्याचार ( पंचविहो ) पाँच प्रकार का