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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
कर्मारिध्वं सुबुद्धिं वर- कमल-निभं पद्म-पुष्पाभि- गंधम् । क्षान्तं दान्तं सुपार्श्व, सकल- शशि-निभं चंद्रनामान मीडे ।। अन्वयार्थ - ( जिनवरं ) जिनों में श्रेष्ठ ( देवपूज्यं ) देवों के द्वारा पूज्य ( नाभेयं ) नाभि राजा के पुत्र / नाभिनन्दन श्री आदिनाथ जिनेन्द्र की । ( सर्वलोकप्रदीपं ) तीन लोक को प्रकाशित करने के लिये उत्कृष्ट दीप सम श्री ( अजितं ) अजितनाथ जिनेन्द्र की । ( सर्वज्ञं ) त्रिकालवर्ती समस्त द्रव्य और उनकी समस्त पर्यायों को युग्पत् जानने वाले श्री ( संभव ) संभवनाथ गिते । शुनिगणनं ठेवते गुनियों के समूह में श्रेष्ठ, देवाधिदेव ( नन्दनं ) श्री अभिनन्दन जिनेन्द्र की । ( कर्मारिघ्नं ) कर्मरूपी शत्रुओं को नाश करने वाले ( सुबुद्धिं ) श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्र की । ( पद्मपुष्प अभिगन्धं ) कमल के पुष्प समान जिनके पावन शरीर की सुगंधि हैं ऐसे ( वरकमलनिभं ) श्रेष्ठ कमल पुष्प के समान आभायुक्त श्री पद्मप्रभू जिनेन्द्र की । (शांतं ) क्षमा / शान्ति / सहिष्णुता गुण युक्त ( दान्तं ) जितेन्द्रिय (सुपार्श्व ) सुपार्श्वनाथ जिनेन्द्र की । ( सकलशशिनिभं ) पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्रमा की आभा समान ( चन्द्रनामानं ) चन्द्रप्रभ नाम भगवान् की ( ईडे ) मैं स्तुति करता हूँ ।
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विख्यातं पुष्पदन्तं भव भय मथनं शीतलं लोक- नाथम् । श्रेयांसं शील- कोशं प्रवर-नर-गुरुं वासुपूज्यं सुपूज्यम् ।। मुक्तं दान्तेद्रियाचं, विमल - मृषि-पतिं सैंहसेन्यं मुनींद्रम् । धर्म सद्धर्म - केतुं शम-दम-निलयं स्तौमि शांति शरण्यम् ।।
अन्वयार्थ - ( विख्यातं ) विशेष प्रसिद्धि को प्राप्त ( पुष्पदन्तं ) श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्र की / ( भवभयमथनं ) संसार के भय का मथन / नाश करने वाले (शीतलं ) श्री शीतलनाथ जिनेन्द्र की / ( सुपूज्यं ) सम्यक् प्रकार से सौ इन्द्रों से पूज्य ( प्रवरनरगुरुं ) श्रेष्ठ या उत्तम मनुष्य - चक्रवर्ती गणधर आदिकों के गुरु ( मुक्तं ) चार घातिया कर्मों से रहित ( दान्त इन्द्रिय अश्वं ) इन्द्रियरूपी घोड़ों का दमन करने वाले ( विमलं) विमलनाथ जिनेन्द्र की । ( ऋषिपति ) ऋद्धिधारी मुनियों के अर्थात् गणधर आदि सप्तर्द्धिधारी मुनियों के स्वामी ( मुनीन्द्रं ) मुनियों में श्रेष्ठ ( सिंह सैन्यं ) सिंहसेन राजा के पुत्र श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्र की ( सत् धर्म केतुं )