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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका चोर की कथा १६. णंदीफल-अटवी में स्थित, बुभुक्षा से पीड़ित धन्वंतरि, विश्वानुलोम, और भृत्य के द्वारा लाये हुए किंपाक फल की कथा १७. उदकनाथकथा ८१, मंडूककथा- जातिस्मरण होने वाले मेंढक की कथा १९. पुंडरीगो-पुंडरीक नामक राजपुत्री की कथा ।
अथवा गुणजीवापज्जत्ती, पाणा सण्णाय मग्गणाओय ।
एउणवीसा एदे, णाहज्झाणा मुणेयव्या ।।१।। गुणस्थान १४, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा और मार्गणा ये १९ प्रकार के नाथाध्ययन समझना चाहिये ।
अभामा णवकेवलहीओ, कम्मक्खयजा हवंति दसचेव ।
णाहज्झाणाएदे, एउणवीसा वियाणाहि ।।२।। घातिया कर्मों के क्षय से होने वाले दस अतिशय तथा नव प्रकार की लब्धि संबंधी जिनवाणी का यथासमय अध्ययन करना । इस प्रकार १९ नाथाध्ययनों में, असमाधि के २० स्थानों में । रत्नत्रय में स्थित आराधक मुनि के चित्त में किसी भी प्रकार की आकुलता का न होना समाधि है; इससे विपरीत अर्थात् रत्नत्रय की आराधना में विक्षिप्त चित्त का रखना असमाधि है। असमाधि के २० स्थान हैं
१. डबड़वचर-ईर्यासमिति से रहित चलना ।
२. अप्पमज्जियं-बिना देखे-शोधे शौचादि के उपकरणों को रखना या उठाना।
३. रादीणीयपडिहासी-अपने से एक रात्रि भी दीक्षा में बड़ा है, उसके बीच में बोलना या उसका तिरस्कार करना।
४. अधिसेज्जाणं-अपने से दीक्षा में बड़े हैं उनके अथवा गुरु के मस्तक पर सोना।
५, कोही-गुरु के वचनों पर क्रोध करना।
६. थेरविवाद तराए-जहाँ अपने से बड़े गुरु आदि बोल रहे हों वहाँ बीच में बोलना।