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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ७. उवघाद-दूसरों का तिरस्कार करके बोलना। ८. अणणुवीधि-वीतराग प्रणीत शास्त्र के विरुद्ध बोलना । ९. अधिकरणी-स्वबुद्धि से आगम विरुद्ध तत्त्व का कथन करना ]
१०. पिट्ठिमास-पडिणीओ-पीठ का मांस खाना अर्थात् पीठ पीछे किसी की चुगली करना ।
११. असमाहि कलहं--एक की बात दूसरे को कहकर झगड़ा पैदा कर देना।
१२. झंझा-थोड़ी-थोड़ी कलह करके शेष करना।
१३. सहकरेपढिदा-सबकी ध्वनि का तिरस्कार करके स्वयं बड़े जोर-जोर से पढ़ना जिससे दूसरे अपना पाठ भूल जाये।
१४. एषणासमिति-एषणा समित्ति रहित आहार करना ।
१५. सूरघमाण भोजी—जिस भोजन से प्रमाद आवे ऐसे गरिष्ठ भोजन का सेवन करना।
१६. गणांगणिगो-बहुत अपराध करने वाला अर्थात् एक गण से दूसरे गण में निकाल देने वाला अपराध करना।
१७. सरबखरावदे--धूलि से भरे हुए पैरों से जल में प्रवेश करना और गीले पैरों से धूलि में प्रवेश करना । ।
१८. अप्पमाण मोजी–अप्रमाण भोजन करना अर्थात् भूख से ज्यादा खाना।
१९. अकाल सज्झाओ--अकाल में स्वाध्याय करना । २०. अदिट्ठ-बिना देखे इधर-उधर देखकर गमन करना।
२१ प्रकार के सबल में-पंचरस, पंचवर्ण, दो गन्ध, आठ स्पर्श तथा जिन्होंने परिवार के लोगों को छोड़ दिया है उन पर स्नेह करना--- ये २१ सबल हैं
पंचरस पंचवण्णा दो गंधा अगुफासगण भेया । विरदि-जण राग सहिदा इगिबीसा सबल किरियाओ ।।