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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका २३ प्रकार के सूत्रकृताग दूसरे अंग के अधिकारों में--
समए वेदालिंझे एत्तो उवलग्ग इस्थि परिणामे । पिरयंतर वीर थुदी, कुसीलपरिभासिए विरिये ।।१।। धम्मो य अग्ग मग्गे, समोवसरणं तिकागंथाहिदे । आदा तदित्थगाथा, पुंडरिको किरियठाणे थ ।।२।। आहारय परिणामे पच्चक्खाणा-णगार गुणकित्ति । सुद अत्था णालंदे सुत्यउज्झाणाणि तेवीसं ।।३।। १. समए-समयाधिकार—जिसमें स्वाध्याय के योग्य तीन काल का प्रतिपादन किया हो।
२. वेदालिंझे-वेदलिंगाधिकार-जिसमें तीन लिंगों ( स्त्री-पुरुषनपुंसक ) का वर्णन हो।
३. उवसग्ग-उपसर्गाधिकार-जिसमें चार प्रकार के उपसर्गों का निरूपण है।
४. इस्थिपरिणामे सोपरिणाम अभिलार-.-मियों के स्नभान का वर्णन करता है।
५.णिरयंतर-नरकान्तर अधिकार-नरकादि चतुर्गतियों का वर्णन करता है।
६. वीरथुदी–वीर स्तुति अधिकार---२४ तीर्थंकरों के गुणों का वर्णन करता है।
७. कुसील परिभासिए---कुशील परिभाषा अधिकार--कुशील आदि ५ प्रकार के पार्श्वस्थ साधुओं का वर्णन करता है।
८. विरिए–वीर्याधिकार--जीवों की तरतमता से वीर्य का वर्णन करता है।
९. धम्मो य-धर्माधिकार-धर्म और अधर्म के स्वरूप का वर्णन करता है।
१०. अग्ग–अग्राधिकार---श्रुत के अग्रपदों का वर्णन करता है।