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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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रखने वाला है ( सामाइयं ) सामायिक रूप है, परम उदासीनता रूप तथा सर्वसावद्य योग का अभाव होने से निग्रंथ लिंग ही सामायिक हैं ( संसुद्धं ) संशुद्ध है अर्थात् अतिचार रहित आलोचनादि प्रायश्चित्त से विशुद्ध होने के कारण शुद्ध हैं ( सल्लघट्टाणं ) माया मिथ्या निदान आदि शल्य से दुखी जीवों की ( सल्लघत्ताणं ) माया मिथ्या निदान आदि शल्यों का नाश करने वाला है (सिद्धिमग्गं ) सिद्धि का मार्ग है अर्थात् स्वात्मोपलब्धि का मार्ग है ( सेदिमग्गं ) उपशम और क्षपक श्रेणी का मार्ग है ( खंतिमग्गं ) शान्ति और क्षमा का मार्ग हैं ( मुत्तिमग्गं ) मुक्ति का मार्ग है ( पमुत्ति मग्गं ) उत्कृष्ट रूप से तिल-तुष- मात्र परिग्रह का त्याग, परम निस्पृह भाव स्वरूप हैं ( मोक्खमग्गं ) मोक्षमार्ग हैं, ( पमोक्खमग्गं ) अरहंत, सिद्ध अवस्था की प्राप्ति का उपाय है ( णिज्जाणमग्गं ) निर्याणमार्ग अर्थात् चतुर्गति भ्रमण के अभाव का मार्ग हैं ( णिवाणमग्गं ) निर्वाण का मार्ग हैं (सव्वदुक्खपरिहाणिमग्गं ) सर्व दुख- शारीरिक, मानसिक आदि के नाश का मार्ग हैं ( सुचरियपरिणिव्वाणमग्गं ) सामायिक आदि शुद्ध चारित्र को पूर्णता द्वारा एक-दो भव में निर्वाण की प्राप्ति का मार्ग है ( अवित्तहं ) मोक्षार्थी जीवों को मोक्ष प्राप्ति निर्ग्रथलिंग से ही होती है इसमें कोई विवाद भी नहीं हैं ( अविसंति ) मोक्षार्थी इस निर्ग्रथ लिंग का आश्रय लेते हैं ( पवयणं ) यह निग्रंथ लिंग सर्वज्ञ द्वारा प्रणीत है ( तं उत्तमं ) उस उत्तम निर्ग्रथ लिंग का (सहामि ) मैं श्रद्धान करता हूँ ( तं पत्तियामि ) उस निर्बंध लिंग को मैं प्राप्त होता हूँ ( तं ) उस निर्ग्रथलिंग की ( रोचेमि ) रुचि करता हूँ ( तं ) उस निर्ग्रथ लिंग का ( फासेमि ) स्पर्श करता हूँ | ( इदोत्तरं ) इस निर्ग्रथ लिंग से बढ़कर ( अण्णं ) अन्य कोई मोक्ष का हेतु ( णत्थि ) वर्तमान में नहीं है ( ण भूदं ) भूतकाल में नहीं था ( पण भविस्सदि ) न भविष्य काल में होगा ( णाणेण ) ज्ञान से (वा) अथवा ( दंसणेण ) दर्शन से (वा) अथवा ( चरितेण ) चारित्र से (वा) या ( सुत्तेण ) सर्वज्ञ प्रणीत आगम से, क्योंकि श्रुत/ आगम निग्रंथ लिंग का ज्ञापक या कारण होने से (वा) अथवा ( इदो ) इस निर्ग्रथ लिंग से ( जीवा ) जीव (सिज्झति ) आत्मस्वरूप को प्राप्त कर सिद्ध अवस्था को प्राप्त होते हैं (बुज्झति ) वीतरागता की वृद्धि के कारण मुनि अवस्था प्राप्त कर जीवादि तत्त्वों के विशेष ज्ञान को प्राप्त करते हैं ( मुंचति ) संपूर्ण कर्मों से मुक्त हो जाते हैं।