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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका - इसके बाद ती दिन का सत्रयह करना, फिर सात दिन का अवग्रह करना आठवीं प्रतिमा हैं।
इसके बाद किसी भी प्रकार का आहार प्राप्त होने पर क्रम-क्रम से तीन ग्रास लेने का दो ग्रास ब एक ग्रास लेने का अवग्रह करना—नौं, दसवों व ग्यारहवीं प्रतिमा है उसके बाद वह अहोरात्रि प्रतिमायोंग से रहता है। तत्पश्चात् रात्रि में प्रतिमा योग से स्थित होकर प्रात:काल केवलज्ञान प्राप्त करता है इन बारह प्रतिमाओं में।
तेरह प्रकार की क्रिया स्थानों में– ६ आवश्यक, ५ नमस्कार ( अरहंत-सिद्ध-आचार्य, उपाध्याय, साधु ) और निस्सहि, आस्सहि का उच्चारण करना । इन १३ क्रियाओं में, निस्सहि-जिन मंदिर, सूने मकान, धर्मशाला आदि में प्रवेश करते समय और मल-मूत्र करते समय निस्सहिनिस्सही-निस्सही पदों का उच्चारण करना चाहिये।
आस्साहि-जिनमंदिर आदि से निकलते समय "आस्साहि-आस्सहिआस्सहि' पदों का उच्चारण करना चाहिये । इन १३ क्रियाओं में,
१४ प्रकार के भूतप्राम–एकेन्द्रिय सूक्ष्मबादर=२, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, असैनी व सैनी पंचेन्द्रिय-७ । इन ७ को पर्याप्त व अपर्याप्त से गुणा करने पर १४ प्रकार के भूतग्राम होते हैं । १४ जीव समास ही १४ भूतग्राम हैं अथवा मिथ्यात्व, सासादन आदि १४ गुणस्थानों में जीव के रहने से भी ये भूतग्राम कहे जाते हैं। इन १४ भूतग्रामों में
१५ प्रकार के प्रमाद स्थानों में-४ विकथा, ४ कषाय, ५ इन्द्रिय अभिलाषा, स्नेह और निद्रा ये १५ प्रमाद स्थान हैं।
१६ प्रकार प्रवचनों में तीन प्रकार की विभक्ति एकवचन, द्विवचन, बहुवचन, तीन काल-भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यत्काल, तीन लिंग-पुरुष/पुलिंग, स्त्रीलिंग व नपुंसक लिंग, अधिक, ऊन तथा मिश्र तीन प्रकार के वचन, समय ( आगम/शास्त्र ) वचन, लौकिक वचन, प्रत्यक्ष व परोक्ष वचन ३+३+३-३+१+१+१+१=१६ प्रकार के ये प्रवचन हैं । इन प्रवचनों में अथवा ७ विभक्ति, ३ लिंग. ३ काल, ३ वचन = १६ प्रवचनों में।