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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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1 इथ) इस प्रकार ( मेरे द्वारा व्रतों में जो कोई ) जो भी कोई (राइओ) रात्रि में ( देवसिओ) दिन में ( अइचारो ) अतिचार (अणायारो) अनाचार लगा हो ( तस्स ) तत्संबंधी ( मे ) मेरे ( दुक्कडं ) दुष्कृत (मिच्छा ) मिथ्या हों । इसीलिये ( पडिक्कमामि ) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ।
भावार्थ - हे भगवन् ! मैं एक से लेकर तैतीस संख्या पर्यन्त व्रत में लगे दोषों की आलोचना करता हूँ। हे प्रभो ! मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । एक अनाचार परिणाम में, दो राग-द्वेष परिणामों में, तीन मन-वचन-- काय की दुष्टता से लगने वाले दोषों में, मन-वचन-काय तीन गुप्तियों, रस गारव, ऋद्धि गारव व स्वाद गारव या शब्द गारव रूप तीन गारव में, क्रोध - मान-माया - लोभ चार कषायों में, पाँच महाव्रतों में, पाँच समितियों में, पाँच स्थावर, एक त्रस छः जीवनिकायों में, इहलोक भय, परलोक भय, अत्राण भय, अगुप्तिभय, मरणभय, वेदनाभय, अकस्मात्भय ऐसे सात भयों में ज्ञान - पूजा - कुल - जाति-बल- ऋद्धि-तप-वपु आठ मदों में, स्त्री सामान्य जाति मन-वचन- काय और कृत- कारित - अनुमोदन से सेवन करने रूप नव प्रकार ब्रह्मचर्य गुप्ति में, उत्तम क्षमा आदि १० धर्मों में, दर्शन-व्रत - सामायिक - प्रोषध, सचित्तत्याग-रात्रिभुक्तित्याग-ब्रह्मचर्यआरंभत्याग-परिग्रह त्याग - अनुमति त्याग और उद्दिष्ट त्याग रूप ११ प्रतिमाओं में, उत्तम संहननधारी मुनियों की बारह प्रकार प्रतिमाओं में
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मासिय दुय तिय च पंच मास छ मास सत्त मासेश्च । तिण्णेष मेदराई सत्तराउ इन्दियराई पडमाओ ।।
उत्तम संहनन वाले मुनिराज किसी देश में उत्कृष्ट दुर्लभ आहार ग्रहण करने का व्रत ग्रहण करते हैं। यथा- एक महीने के भीतर-भीतर मुझे ऐसा आहार मिलेगा तो ग्रहण करूँगा अन्यथा नहीं ऐसी प्रतिज्ञा करना प्रथम प्रतिमा है | महिने के अन्तिम दिन प्रतिमा योग धारण करता है ।
प्रथम आहार से सौगुना दुर्लभ आहार दो महिने के भीतर मिलेगा तो ग्रहण करूँगा नहीं तो नहीं- ऐसी प्रतिज्ञा करना दूसरी प्रतिमा है ।
इसी तरह उत्तरोत्तर उत्कृष्ट आहार तीन माह, चार माह, पाँच माह, छह व सात माह के भीतर मिलेगा तो करूंगा अन्यथा नहीं— क्रमशः ऐसी प्रतिज्ञा करना तीसरी, चौथी, पाँचवीं, छठी और सातवीं प्रतिमा हैं ।