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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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उनके द्वारा आश्रित क्षेत्र १२. उनके द्वारा छोड़े हुए आश्रित क्षेत्र १३. योगस्थित तपस्वी १४. उनके द्वारा आश्रित क्षेत्र १५. उनके द्वारा छोड़े हुए शरीर आश्रित क्षेत्र १६. तीन प्रकार के पंडित मरण ।
१८. दोष -- जन्म, जरा, तृषा, क्षुधा, विस्मय, आर्त, खेद, रोग, शोक, मद, मोह, भय, निद्रा, चिन्ता, स्वेद, राग, द्वेष और मरण ।
मम मंगलं अरहंता य, सिद्धा य, बुद्धा य, जिणा य, केवलिणो, ओहिणाणणी, भणपज्जवणाणिणो, चउदसपुष्ध-गामिणां, सुद-समिदि-समिद्धा य, तवो य, बारह - विहो तवस्सी, गुणा य, गुणवंतो य, महरिसी, तित्थं, तित्थंकरा य, पवयणं, पवयणी य, पाणं, पाणी य, दंसणं, दंसणी य, संजमो, संजदा य, विणओ, विणदा य, बंभचेरवासो, बंभचारी य, गुत्तीओ चेव, गुत्ति- मंतो य, मुत्तीओ चेव, मुत्तिमंतो य, समिदीओ चेव, समिदि मंतो य, सुसमय-परसमय बिदु, खंति, खंतितो य खवगाय, खीण - मोहाय खीणवंतो य, बोहिय- बुद्धा य, बुद्धिमंतो य, चेड़य - रुक्खा-य, चेइयाणि ।
अन्वयार्थ -- ( अरहंता ) अरहंत ( य ) और (सिद्धा ) सिद्ध (य) और ( बुद्धा ) हेय उपादेय ज्ञान से युक्त बुद्ध ( थ ) और ( जिणा ) जिन (य) और ( केवलिणो) केवलज्ञानी (ओहिणाणिणो ) अवधिज्ञानी (मणपज्जवाणिणो ) मन:पर्ययज्ञानी ( चउदसपुब्व- गामिणो ) चौदह पूर्व के ज्ञाता (य) और ( सुदसमिदि समिद्धा ) श्रुत के समूह से युक्त ( तवो वारह विहो ) बारह प्रकार का तप ( य ) और ( तवस्सी) बारह प्रकार के तप को धारण करने वाले तपस्वी ( गुणा ) ८४ लाख गुण ( य ) और ( गुणवंतो ) चौरासी लाख गुणों को धारण करने वाले ( महरिसी ) ऋद्धिधारी मुनि (तित्थं ) तीर्थ (य) और ( तित्थंकरा ) तीर्थंकर (पवयणं ) प्रवचन ( य ) और ( पवयणी ) प्रवचन देने वाले ( णाणं ) ज्ञान (य) और (पाणी) पाँच प्रकार के ज्ञान को धारण करने वाले ज्ञानी ( दंसणं ) औपशमिक क्षायोपशमिक और क्षायिक दर्शन (य) और ( दंसणी ) तीन दर्शन के धारक सम्यग्दृष्टि जीव (संजमो ) बारह प्रकार का संयम (य) और ( संजदा ) संयम को धारण करने वाले ( विणओ ) चार प्रकार का विनय (य) और ( विणदा ) चार प्रकार विनय के धारक