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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ज्ञानावरण, दर्शनावरण रूप कर्म रज से रहित होने से नीरज ! ( णिम्मल ) निर्मल-द्रव्य व भावकर्म रहित निर्मल ! ( सममण ) अर्घाक्तारण असिंप्रहारण में सदा समताधारक ऐसे सममण ! ( सुभमण ) आर्त्त-रौद्रध्यान रहित शुभमन ! ( सुसमत्य ) कायक्लेश-उपसर्ग व परीषहों के सहन करने में समर्थ होने से सुसमत्थ ! ( समजोग ) परम उपशम योग वाले होने से समजोग ! ( समभाव ) संसारवर्द्धक राग-द्वेष परिणामों से रहित होने से समभाव ! इस प्रकार जो अरहतादि हैं उन सबको नमस्कार हो। नमस्कार हो । नगरका हो ।
इस प्रकार यहाँ तक सामान्य अर्हतादिकों की स्तुति कर पुनः विशेष रूप से अंतिम तीर्थकर श्री महावीर स्वामी की स्तुति करते हुए लिखते हैं—( सल्लघट्टाणं ) हे संसारवर्द्धक शारीरिक, मानसिक दुख पहुंचाने वाली, बाण के समान चुभने वाली माया-मिथ्यात्व-निदान शल्य के नाशक [ सल्लघत्ताणं] हे संसारी जीवों की शल्य के विनाशक ( णिब्भय ) निर्भय ( णीराय ) राग रहित ( णिद्दोस ) निदोष-१८ दोषों से रहित ( णिम्मोह ) निर्मोह ( णिम्मम ) निर्ममत्व ( णिस्संग ) निष्परिग्रह ( णिस्सल्ल माया, मिथ्यात्व निदान शल्य रहित । निःशल्य ( माण-माया-मोस-मूरण ) मान, मायाचार और झूठ का मर्दन करने वाले ( तवप्पहावण ) हे तप प्रभावक ! ( गुणरयण ) हे ८४ लाख गुण के स्वामी गुणरत्न ! ( सील सायर ) हे १८ हजार शीलों के समुद्र सीलसायर ( अणंत ) हे अन्त रहित होने से अनन्त या अनन्त चतुष्टय धारक हे अनन्त ! ( अप्पमेय ) इन्द्रिय ज्ञान से जानने योग्य न होने से हे अप्रमेय ( महदि महावीर ) हे पूज्यनीय महावीर ! ( ववमाण ) हे वर्द्धमान (बुद्धिरिसिणो ) हे बुद्धर्षिन् ! आपको ( णमोत्थु ए णमोत्यु ए णमोत्थु ए ) आपको तीन बार नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो।
___ भावार्थ-१७ प्रकार के निषिद्ध का स्थान-१. कृत्रिम-अकृत्रिम अरहंत सिद्ध प्रतिबिम्ब २. कृत्रिम-अकृत्रिम जिनालय ३. बुद्धि और ऋद्धि सम्पन्न मुनि ४. उन मुनियों के द्वारा आश्रित क्षेत्र ५. अवधि मन:पर्यय केवलज्ञानी ६. ज्ञानोत्पत्ति के प्रदेश ७. उनके द्वारा आश्रित क्षेत्र ८. निर्वाण क्षेत्र ९. उनके द्वारा आश्रित क्षेत्र १०. सम्यक्त्व गुण युक्त तपस्वी ११.