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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका जाने वाली भाषा संबंधी कथा में, तप स्वध्याय आदि से रहित अप्रयोजनीय असंबद्ध प्रलाप रूप कथा में, तप स्वाध्याय आदि से राहत अयोजनाय असंबद्ध प्रलाप रूप कथा में, राग-द्वेष-भोग के वर्णन रूप विकथा, निष्ठुर कथा अर्थात् मर्मभेदी, कठोर तर्जन रूप भयंकर बच्चनयुक्त कथा में, पर पैशुन्य कथा-दूसरों के दोषों को परोक्ष में प्रकट करने वाली चुगली रूप कथा में, कंदर्पिका कथा सग के उद्रेक सहित हो हास्य मिश्रित अशिष्ट वचनों वाली कथा के प्रयोग में, स्त्रियों को कथा, डम्बर, अर्थात् विरह कलह आदि युक्त कथा में मौखरिकी-दृष्टतायुक्त बहुत प्रलाप करने वाली कथा में, आत्मप्रशंसा रूप कथा में, परपरिवादन-दूसरों के समक्ष दुष्ट भावों से दूसरों की निन्दा करने वाली कथा में, दूसरों को पीड़ा पहुंचाने वाली कथा में, सावधअनुमोदिका याने हिंसादि का अनुमोदन करने वाली विकथाओं में, इस प्रकार मेरे द्वार रात्रि में, दिन में अपने व्रतों में जो भी कोई अतिचार अनाचार हुआ तत्संबंधी मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। इसीलिये मैं अपने दोषों के निराकरण के लिए प्रतिक्रमण करता हूँ। आर्तध्यानादि अशुभ परिणाम व कषायादि दोषों की आलोचना
पडिक्कमामि भंते ! अट्टज्झाणे, रूद्दज्झाणे, इह-लोय-सण्णाए, पर-लोय-सण्णाए, आहार-सपणाए, भए-सण्णाए, मेहुण-सण्णाए, परिग्गह-सण्णाए, कोह- सल्लाए, माण-सल्लाए, माया-सल्लाए, लोहसल्लाए, पेम्म-सल्लाए, पिवास सल्लाए, मिच्छा-दंसपा-सल्लाए, कोहकसाए, माण-कसाए, माया-कसाए, लोह-कसाए, किण्ह-लेस्सपरिणामे, णील-लेस्स-परिणामे, काउ-लेसस-परिणामे, आरम्भ-परिणामे, परिग्गह-परिणामे, पडिसयाहिलास-परिणामे, मिच्छादसण-परिणामे, असंजम-परिणामे, पाव-जोग- परिणामे, काय-सुहाहिलास-परिणामे, सहेसु, रूत्वेस, गंधेसु, रसेसु, फासेसु, काइयाहि करणियाए, पदोसियाए, परदावणियाए, पाणाइवाइयासु, इत्य मे जो कोई राइओ ( देवसिओ) अइचारो अणाचारो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।
अन्वयार्थ ( भंते ! पडिक्कमामि ) हे भगवान् ! मैं आर्तध्यान आदि अशुभ परिणामों के करने से लगे दोषो की आलोचना करता हूँ---( अट्टज्झाणे ) चार प्रकार के आर्तध्यान में, ( रुद्दज्झाणे) चार प्रकार के रौद्रध्यान में