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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अथवा ( निरिमुह चरंतेण ) तिरछा मुँह करके चलने में ( वा ) अथवा ( दिसिमुहं चरतेण ) चारों दिशाओं में मुँह करके चलने में ( वा ) अथवा ( विदिसिमुहं चरंतेण ) विदिशाओं में मुंह करके चलने में ( वा ) अथवा ( पाणचंकमणदाए ) दो इन्द्रिय, नीट इन्द्रिय आदि टीवों पर चलने से ( वीयचंकमणदार ) गेहूँ, चना आदि बीजो पर चलने से ( हरियचंकमणदाए ) हरित वनस्पतिकायिक जीवों पर चलने से ( उत्तिंग ) पूंछ के अग्रभाग जमीन से स्पर्श करके चलने वाले लट इल्ली उद्वेइ आदि जीव ( पणय ) सेवाल, काई आदि ( दय ) जल के विकार बर्फ, ओला आदि अथवा अप्रासुक जल ( मट्टिय ) बहु पादा खजूर सदृशी अथवा खान की मिट्टी आदि ( मक्कइय ) कोलिक जाति जीव ( तंतु ) तंतु बनाने वाले जीव ( संताण ) पृथ्वी, जल, अग्नि, वायुकायिक इन सब जीवों पर ( चंकमणदाए) चलने में ( पुढविकाइयसंघट्टणाए ) पृथ्वीकायिक जीवों का संघट्टन करने में { आउकाइयसंघट्टणाए ) जलकायिक जीवों के संघटन करने में ( तेउकाइय संघट्टणाए ) तेजकायिक जीवों का संघट्टन करने में ( वाउकाइय संघट्टणाए) वायुकायिक जीवों का संघट्टन करने में ( वणफ्फदिकाइया संघट्टणाए ) वनस्पतिकायिक जीवों का संघट्टन करने में ( तसकाइयसंघट्टणाए ) बस कायिक जीवों का संघट्टन करने मे ( उद्दावणाए ) प्राणों का उत्तापन करने में ( परिदावणाए ) परितापन ( विराहणाए ) विराधन करने में ( एत्य ) इस प्रकार ( मे ) मेरे द्वारा ( इरियावहियाए ) ई समिति में ( जो कोई ) जो कोई भी ( अइचारो ) अतिचार ( अणाचारो ) अनाचार हआ हो । तस्स मे दुक्कडं ) तत्संबंधी मेरे दुष्कृत/पाप ( मिच्छा ) मिथ्या हों अर्थात् ईर्यासमिति में लगे मेरे सभी पाप मिथ्या हों, इसलिए ( पडिक्कमामि ) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।
भावार्थ-अधोमुख, ऊर्ध्वमुख, तिर्यक् मुख, दिशा-विदिशाओं में मुख कर गमन करने से ईर्या समिति में जो दोष लगे हों वे मेरे दोष मिथ्या हो।
। मल-मूत्रादि क्षेपण संबंधी दोषों की आलोचना
पडिक्कमामि भंते ! उच्चार-पस्सवण-खेल-सिंहाण-विडिपट्ठावणियाए, पहावंतेण जो कोई पाणा वा, भूदा वा, जीवा वा, सत्ता वा, संघट्टिदा वा, संघादिदा वा, उहाविदा वा, परिदाविदा वा, इत्थ मे जो कोई राइओ ( देवसिओ) अइचारो अणाचारो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।