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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : श्रीभूपनाभिजनपान्वपपुष्करत्वे,
चिद्रूपदीधितिगणै रविरेव योऽभूत् । स्वीयौजसा शमितमोहतमःसमूहो,
कल्याणवर्णविभुरस्तु विभूतये सः॥२॥ भावार्थ:-पृथ्वी के पालन करनेवाले श्रीमान् नाभिराजा के वंशरूपी आकाश में जो (प्रभु) सम्यग्ज्ञानरूपी किरणों के समूह में सूर्यवत् हुए और जिन्होंने अपने तेज से मोहरूपी अंधकार के समूह का नाश किया वे सुवर्णसमान कान्तिवान् प्रभु हमारी सम्पत्ति की वृद्धि करे !
मोक्ष लक्ष्मी के अद्वितीय हेतुरूप, तीनों लोक की लक्ष्मी के अद्वितीय हेतुरूप, आत्मस्वरूप को प्रकट करनेवाले और गम्भीरतारूप लक्ष्मी को उत्पन्न करने में सागर सदृश ऐसे श्री विश्वसेन राजा के पुत्र श्री शान्तिनाथस्वामी का मैं आश्रय लेता हूं!
मोहरूपी असुरों का नाश करने में नारायण(विष्णु) सदृश और कामदेव का नाश करने में महादेव( शंकर ) सदृश तथा मन को जीतनेवाले और विवाह के बहाने से तिर्यंचोंपर दया करने के लिये ही रथारूढ़ होनेवाले ऐसे श्री नेमिनाथ प्रभु हमारे लिये सुखकारी हों!
शंख को धारण करनेवाले (शंखेश्वर) कृष्णने जिनकी