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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर
प्रथम भाग
प्रथम स्तंभ
व्याख्यान १ मंगलाचरण
स्वस्तिश्रीदो नाभिभूर्विश्वबन्धु
गीर्वाणार्थ्यो वस्तुतस्तत्त्वसिन्धुः ।
भास्वद्दीप्त्या निर्जितादित्यचन्द्रः,
सत्त्वानव्यादादिमोऽयं जिनेन्द्रः ॥ १ ॥
भावार्थ:-- जो नाभिराजा के पुत्र कल्याण और लक्ष्मी को देनेवाले हैं, समस्त विश्व के बन्धु हैं, परमार्थ से तत्वज्ञान के सागर सदृश हैं, जिनकी देवतागण भी प्रार्थना करते हैं, और जिन्होंने अपनी देदीप्यमान कान्ति से सूर्य एवं चन्द्र को भी जीत लिया है ऐसे ये प्रथम जिनेन्द्र ( श्री ऋषभस्वामी ) समस्त जीवों की रक्षा करें !
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