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करते हो, वहां पर साधु साध्वीको नहीं ठेरना चाहिये. कारण आत्मा निमित्तवासी है. जीवोंको चिरकालका काम विकारसे परिचय है. अगर कोइ ऐसे अयोग्य स्थानमें ठेरेगा, तो उस कामी पुरुष या पशु आदिको देख विकार उत्पन्न होने से कोई अचित श्रोत्रसे अपने वीर्यपात के लीये हस्तकर्म करते हुवे को अनुघातिक मासिक प्रायश्चित होगा.
( १७ ) इसी माफिक मैथुन संज्ञासे हस्त कर्म करते हुवे को अनुघातिक चातुर्मासिक प्रायश्चित होगा.
(१८) साधु साध्वीयों के पास किसी अन्य गच्छसे साध्वी आइ हो. उसका साधु आचार खंडित हुवा है. संयम में सबल दोष लगा है, अनाचारसे आचारको भेद दीया है, क्रोधादि कर चारित्रको मलिन कर दीया हो उस स्थानकी आलोचना विगर सुने प्रतिक्रमण न करावे, प्रायश्चित्त न देवे ऐसेही खंडित आचारवालेकी सुखशाता पूछना, वाचना देना, दीक्षाका देना साथ में भोजनका करना ( साध्वीयोंको ) सदैव साथमें रहना, स्वल्पकाल तथा fararaat vatat देना नहीं कल्पै.
( १९ ) आचारादि खंडित हुवा हो तो उसे आलोचना प्रतिक्रमण कराके प्रायश्चित दे शुद्ध कर उसके साथ पूर्वोक्त व्यवहार करना कल्पै.
( २० ) ( २१ ) इसी माफिक साधु आश्रयभी दो
अलापक समझना.
भावार्थ - किसी कारणसे अन्य गच्छ के साधु साध्वी अन्य गच्छ में जाये तो प्रथम उसको मधुर वचनोंसे समझावे, आलोच नाद करायके प्रायश्चित्त दे पीछे उसी गच्छ में भेज देवे. अगर उस गच्छ में विनय धर्म और ज्ञान धर्मकी खामीसे आया हो, तो उसे