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(८) मृत्यु प्रारंभकों मरिया कहना-यहां आयुष्य कमंका ।' प्रति समय क्षिण होते हुवेकों पूर्वके द्रष्टान्तकि माफोक मूर्या ही कहेना।
(९) निर्जराके प्रारंभ समयकों निर्जयों कहना=नो कर्म उदयसे तथा उदीरणासे वेदके आत्म प्रदेशोंसे प्रति समय निजंग करी जाती है उस निर्जराका काल असंख्याते समयका है परन्तु यह पूर्व द्रष्टान्तसे प्रारंभ समयको निर्जा कहना : इति नौ प्रश्नोंका उत्तर दीया।
. (प्र०) हे भगवान् ! चलतेको चलीया यावत् निनरतेके निर्जयों यह नौ पदोंका क्या एक अर्थ भिन्न भिन्न उच्चारण भिन्न भिन्न वर्ण (अक्षरों) अथवा भिन्न भिन्न अर्थ भिन्न भिन्न उच्चा. रण, भिन्न भिन्न वणवाला है।
उ०) हे गौतम ! चलते हुवेको चलीया, उदीरते हुनेको उदीरीया, वेदते हुवेकों वेदीया और प्रक्षिण करते हुवेकों प्राक्षणकिया यह च्यार पदों एकार्थी है और उच्चारण तथा वण भिन्न भिन्न है। यहा पर केवलज्ञान उत्पादापेक्षा है कारण कर्मों का चलना उदोरण तथा उदय हुवेकों वेदना और आत्मप्रदेशोंसे पक्षिण करना यह सव पुरुषार्थ पहले नही उत्पन्न हुवे एसे केवलज्ञान पर्यायकों उत्पन्न करने का ही है वास्ते उत्पन्नपक्षापेक्षा इस च्यारों पदोंका अथ एक ही है।
शेष रहे पांच पद (छेदाते हुवेकों छेद्या यावत् निमरते हुवेको निर्नया) वह एक दुसरेसे मिन्न अथवाले है यह पर वित 'पक्षकि अपेक्षा अर्थात् कमौका सर्वता नाश करना जैसे