Book Title: Shighra Bodh Part 21 To 25
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukhsagar Gyan Pracharak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 402
________________ (४७). मुनियों के व्यावच्च विहारादि कारण होनेसे उस तपकों मुकर करी' तीथीके पेस्तर ही कर दीया जाय। . .. (२) "अहकतं" पूर्वोक्त मुकर करी तीथी पर कीसी सबल कारणसे वह तप नहीं हुवा हो तो उस तपको आगे कर सके। (३) "कोडी सहिय" जिस तपकी आदिमें जो तप कियाहो वह तप उस तपश्चर्यके अन्तमें भी करना चाहिये जेसे एकावली तपकि आदिमें एक उपवास करते है तो अन्तमें भी एक उपवाससे समाप्त करे एवं छठ अट्ठमादि । (४) "नियंट्ठियं" निश्चय कर लिया कि अमूक तीथीकों अमुक तप करना जो फीर किसी प्रकारका कारण क्यो न हो परन्तु वह तप तो अवश्य करे ही। (५) "सागारं" प्रत्याख्यान करते समय आगार रखते है जेसे "अन्नत्थणा भोगेण" इत्यादि उपवास एकासना अम्बिलादि तपमें आगार रखा जाते है। (६) "अणागारं" किसी प्रकारका "आगार" नहीं रखा जावे जेसे अभिग्रह धारक मुनि उत्सर्ग मार्ग धारकोंके अभिग्रह आगार रहित ही होते है। (७) "परिमाण' दात्यादिका परिमाण करना तथा भिक्षा निमत्त मुनि अनेक प्रकारके द्रव्यादिका परिमाण करे । ____(८) "निरविसेसं" सर्वता अप्सानादिका त्याग करना । (९) 'साकेयं गंठसी मुठसी कानसी भादिका संकेत करना जेसे कपडेके गांठ दी रहै वहां तक प्रत्याख्यान और गांठ छोडे वहां तक खुला रहै।

Loading...

Page Navigation
1 ... 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419