Book Title: Shighra Bodh Part 21 To 25
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukhsagar Gyan Pracharak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 400
________________ (४५) लेना दुसरोंसे नही लीवाना, अगर कोई व्यक्ति विमर दी वस्तु लेता हो उसे अच्छा भी नहीं समझना, मनसे अदत्त ग्रहनका इरादा नहीं करना, वचनसे भाषण भी नहीं करना, कायासे उठाके लेना भी नहीं यह महा ऋषियोंका तीसरा महाव्रत है " (१) देवांगना मनुष्यणी तीर्थचणीके साथ मैथुनकर्म सेवन नहीं करना औरोंसे नहीं कराना अगर कोई करता हो उसे अच्छा भी नहीं समझना। मनसे संकल्प न करना, वचनसे मैथुन संबंधी भाषा नहीं बोलना, कायसे कुचेष्टादि नहीं करना यह ब्रह्मचारी पुरुषोंका चतुर्थ महाव्रत है।. .. (१) स्वल्प बहुत, अणु, स्थुल, सचित्त, मचित्त एसा परिग्रह न रखना न रखाना, रखता हो उसे भच्छा भी नहीं समझना, ममत्व भाव रखनेका मनसे संकल्प भी नहीं करना, बचनसे शब्द भी उच्चारण नहीं करना, कायाकर भडोपकरण तथा अपने शरीर पर भी ममस्व भाव नहीं रखना यह निस्टही महात्मावोंका पांचम महाव्रत है।" ... “रात्री भोजन मुनियोंके प्रथम महाव्रतकि भावनामें निषेद है तथा श्रावकोंके बाविस मभक्षोंमें बिलकुल निषेद है " . इस पांचों मूलगुणोंके स्वामि-अधिकारी मुनि मत्तंगन है। (१०) देशमूलगुण प्रत्याख्यान कितने प्रकारके है ? (उ०) देशमूलगुण प्रत्या• पांच प्रकारके है। यथा (१) स्थुल प्राणी जो हलने चलने त्रस जीवोंकों जानके, देखके, निरपराधी, संकल्प-मारनेकि बुद्धि करके नही मारना ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419