Book Title: Shighra Bodh Part 21 To 25
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukhsagar Gyan Pracharak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 398
________________ यहांपर उत्कृष्ट ज्ञान पक्षकों स्वीकारकर स्वसत्ताकों ध्यावे, परसत्ताको त्यागन करना कारण आत्मा स्वसत्ता विलासी है जितने अंस, परसत्ता, परप्रणतिमें, प्रवृत्ति है इतने अंगमें मजानता है इस्के वास्ते शास्त्रकार फरमाते है। . .." जिस जीवोंको एसा ज्ञान है कि इस्में जीव इसमें अजीव । इसमें त्रस, स्थावर, संज्ञी, असंज्ञी, पर्याप्ता, अपर्याप्ता, सूक्ष्म, बादर, यह प्रत्याख्यान इस करण योगोंसे ग्रहन किया है और इसी माफीक पालन करना है यावत् अात्मसत्ताकों जाण, पर प्रणतिका प्रत्याख्यान करनेवाला कहता है कि मैं सर्व प्राणभूत नीव पत्वको मारनेका प्रत्याख्यान किया है वह सत्वभाषाका बोलनेवाला है निश्चय सत्यबादी है तीन करण तीन संयोगसे संयति है व्रती है प्रत्याख्यान कर माते हुवे पापकों प्रतिहत करदीया है क्रिय है संवृत मात्मा है भदंडी है एकान्त पंडित है। - भावार्थ-जिस पदार्थकों ठीक तौरपर नहीं जाना हो उसीका प्रत्याख्यान केसे होसके अगर प्रत्याख्यान कर भी लिया जाय तों उसको पालन किस तौरपर करसके वास्ते शास्त्रकारों का निर्देश है कि पेस्तर स्वसत्ता परसत्ता स्वगुण परगुण पदार्थोकों ठीक ठीक जानों समझो फीरसे परवस्तुका त्यागकर स्ववस्तु (ज्ञानादि) मे रमणता करो। ... (१०) हे प्रभो ! प्रत्याख्यान कितने प्रकारके है ? (उ०) प्रत्याख्यान दो प्रकारके होते है (१) मूलगुण प्रत्याख्यान (२) उत्तरगुण प्रत्याख्यान ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419