Book Title: Shighra Bodh Part 21 To 25
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukhsagar Gyan Pracharak Sabha

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Page 411
________________ (५६) (२) असंयति जोव असंख्यात गुणा ___मनुष्यमें अल्पावत्हुव (३) (१) स्तोक संयति मीवों (२) संयता संयति जीव संख्यात गुणा (३) असंयति जीव असंख्यात गुणा जेसे संयतिके च्यार पदोंसे पृच्छाकर अल्पाबहुत्व कहि है इसी माफीक पच्चखांणीकि भी कहेना । अल्पाबहुत्व संयुक्त इति । सेवं भंते सेवं भंते तमेव सचम् । . थोकडा नम्बर १३ सत्र श्री भगवतीजी शतक ७ उद्देशो ६ . (आयुष्य कर्म) - (प्र) हे भगवान् । कोइ जीव नरकमें उत्पन्न होनेवाला है वह जीव यहांपर रहा हुवा नरकका आयुष्य बान्धता है ? नरकमें उत्पन्न होते समय नरकका आयुष्य बान्धता है ? नरकमें उत्पन्न होनेके बाद नरकका आयुष्य बान्धता है ? . (उ) नरकमें उत्पन्न होनेवाला जीव यहां मनुष्य तथा तीर्यचमें रहा हुवा नरकका आयुष्य बान्ध लेता है ( कारण आयुष्य बान्धीयों विनों जीव पहलेके शरीरको नहीं छोडता है ) नरकमें उत्पन्न होनेके बाद आयुष्य नहीं बान्धता है । इसी माफीक यावत वैमानिक तक चौवीस दंडक समझना । सर्व जीव परभवका आयुष्य बन्ध लेनेके बाद ही परमवमें गमन करते है।

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