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(६०) वेभान बना देती है वास्ते पाठकोंको इस संबंधपर पूर्ण ध्यान देना चाहिये। .
(१) कामी इन्द्रियों श्रोतेन्द्रिय, चक्षु इन्द्रिय ! . (२) भोगी इन्द्रिय, घाणेन्द्रिय, स्सेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय ।
(प्रहे भगवान् ! काम है वह क्या रूपी है. ? अरूपी है?
(उ) काम रूपी है कारण शब्दके और रूपके पुद्गलोंको काम कहते है वह दोनों प्रकारके पुद्गल रूपी है। . (प्र) काम हे सो क्या सचित्त है ? अचित्त है ?
[3] काम, सचित भी है और अचित्त भी है । कारण सचित्त जीव सहित शब्द होना मचित्त नीब रहित शब्द । जीव सहित रूप [ स्त्रीयोंका ] जीव रहित रूप अनेक प्रकारके चित्रादि इन दोनोंकि विषय श्रोतेन्द्रिय, चक्षु इन्द्रिय महन करती है वास्ते 'सचित्त अचित्त दोनों प्रकारके काम होते है।
(प्र) काम है सो क्या जीव है ? अभीव है।
(उ) काम जीव भी है अनीव भी। भावना पूर्ववत् अर्थात् श्रोतेन्द्रिय, चाइन्द्रियके काममें आनेवाले पदार्थ जीव अजीव दोनों प्रकारके होते है।
(प्र) काम जीवोंके होते है या मजीवोंके होते है ?
(उ) काम जीवोंके होते है किंतु अनीवोंके नहीं होते है । कारण श्रोतेन्द्रिय चक्षु इन्द्रिय होती है वह जीवके ही होती है न कि अजीवके । -
(प्र) हे भगवान् ! काम कितने प्रकारकें है ?