Book Title: Shighra Bodh Part 21 To 25
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukhsagar Gyan Pracharak Sabha

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Page 404
________________ (४२) (७) 'साधु बचन' ! साधु. उग्घाडा पौरषो भगानेके शब्द सुनके पौरषीका प्रत्या० पारे अर्थात साधु छे घडी दीन मानेसे उग्धाडा परिषी भणाते है। इसके ज्ञाते न होनेसे पौरषीका प्रत्या: ख्यान पारे । तो ' भागार : ___(८) 'लेपालेप' जिस मुनिकों घृतका त्याग है भिक्षा देनेवाला दातारका हाथ, घृतसे लेपालेप था, हाथ पुच्छलने पर भी लेप रहे गण हो वह दातार भात पाणी देते समय लेपालेप लाग मी जावे तो भी व्रत भंग नहीं होते है. ' भागार' (९) 'गृहस्थ संसृप्टेन' शाकं प्रमुख द्रव्य गृहस्थ लोक अपने लिये कुछ बगारादि दीया हो तथा रोटो मादि स्वल्प घृतसे चो. 'पड़ी होय एसा संसृष्ट आहार लेना पडे तो “ आगार " .. (१०), 'उत्क्षिप्त विवेकेन' पुरी रोटी आदि द्रव्य पर कठिन विगई गुलादि रखा हो उस्कों आहार देते समय उठालीया हो परन्तु । उस्का कुछ अंस उस भोजनमें रह भी गया हो एसा माहार लेना पडे " आगार" - (११) 'प्रतित्य मुक्षितेन' रोटी प्रमुक करते समय कीसी कारणसे तेल या वृतकि अंगली लगाई जाती है जिससे मुख पूर्वक बट सके एसा आहार भी लिया जाय तो " भागार " (१२) 'पारिष्टापनिका कारण सो भिक्षा करतो आहार मधिक आया हो सर्व मुनियोंको देनेपर भी ज्यादा हो वह एकासनदिके मुनि गुरु माजासे भोगव भी ले तो उस्मे व्रत भंग नहीं होते है कारण परठणेमें नीबोंकि अयना होती है। ...

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