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(२) सर्व मृत वनास्पति तीनौ कालमें स्थित । (१) सर्व जीवनीवनके सुखदुःखकों जाननेवाली पांचे.
न्द्रिय जीव । . (४) सर्व सत्व पृथ्वी अप तेउ वायु जीव सत्ता संयुक्त ।
इस च्यारों प्रकारके जीवोंकों मारनेका प्रत्याख्यान करने वालोंकों क्या सुपत्याख्यान होता है या दुःप्रत्याख्यान होता है अर्थात् अच्छे सुन्दर प्रत्याख्यान कहना या खराब प्रत्याख्यान कहना !
(३०) हे गौतम पूर्वोक्त सर्व जीवोंकों मारनेका त्याग किया हो उसकों स्यात् अच्छे प्रत्याख्यान भी कहा जाते है स्यातू खराब प्रत्याख्यान भी कह जाते है ।
(प्र०) हे भगवान् । इसका क्या कारन है।
(उ०) जीस जीवोंकों एसा जाणपणा नही है कि यह जीव है यह अजीव है यह त्रस है यह स्थावर है (उपलक्षणसे) “ यह संज्ञी, असंज्ञी, पर्याप्त, अपर्याप्त, सुक्ष्म, बादर, इत्यादि प्रत्याख्यान क्या वस्तु किस वास्ते किया जाते है, क्या इसका हेतु है, कितने करण योगसे मैं प्रत्याख्यान करता हूं" एसा जानपणा न होनेपर भी वह जीव कहेते है कि मैं सर्व प्राणभूत जीव सत्वके प्रत्याख्यान किया है वह जीव सत्य भाषाके बोलनेवाला नही है किन्तु असत्य भाषी है, निश्चयकर मृषाबादी है, सर्व प्राण यावत सत्वके लिये तीन करण तीन योगसे असंयति है अव्रती है प्रत्याख्यानकर पापकर्म आते हुवेकों नही रोके है । सक्रिय है, आत्माकों संवृत नही करी है । एकान्त दंडी (आत्माकों दंडारण है)एकान्त बाल= मज्ञानी है।