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पांच दंडक लगानेसे १२५ अलापक हुवे । ... भागे मुनिके भिक्षाके दोषोंका अधिकार है वह शीघ्रबोध
भाग चौथामें छप चुका है वहांसे देखे । ... (५०) हे भगवान् ! अगर कोई मुनि उद्योग सून्य अयत्नासे गमनागमन करे। वस्त्र पात्रादि उपकरणो ग्रहन करे या पीच्छा रखे उसकों क्या इर्यावही क्रिया लागे या संपराय क्रिया कामे ? . (उ०) उक्त मुनियोंको इर्यावही क्रिया नहीं लागे, किन्तु संपराय किया लगती है । कारण जिस मुनियोंका क्रोध मान माया लोभ नष्ट हो गये है । उस जीवोंकों इर्यावही क्रिया लगती है
और जिस जीवोंका क्रोध मान माया लोभ क्षय नही हुवे है उस जीवोंकों संपराय क्रिया लगती है । तथा नो मुत्रमें लिखा है इसी माफीक चलनेवाले होते है उस मुनिकों इर्यावही क्रिया लगती है और सूत्रमें कहा माफीक नहीं चले उसकों संपराय क्रिया लगती है अर्थात् सूत्र में कहा माफीक वीतराग हो वह ही चाल मते है इति।
. सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।
___ थोकडा नम्बर १२ सूत्र श्री भगवतीजी शतक ७ उद्देशा २
(प्रत्याख्यानाधिकार ) अन्य स्थलपर प्रत्याख्यान करने के लिये मुनियोंके अनेक प्रकारके अभिग्रह और श्रावकोंके लिये ४९ भांग बतलाये है इसी भांगोंके ज्ञाता होनेसे हि शुद्ध प्रत्याख्यान करके पालन कर