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( २० )
(उ०) हाँ, वीर्यसे ही परमव गमन करता है । अव से नहीं । (प्र०) वीर्य से करते है तो क्ण बालवीर्यते पंडितवीर्यसे वालपंडित वीर्य से परभव गमन करते है ।
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(उ० ) है गौतम | पंडितवीर्य साधुवोंके और बाळपंडित वीर्य arania होते है इसमे परमव गमन नही करते है क्युकि परमत्र गमन समय जीवोंके पहेलों दुम्रो और चोथो यह तीन गुणस्थान होते है वह तीनों गुण० बालवीर्य धारक है बास्ते परमव गमन बालवीर्यसे ही होते है ।
(प्र०) पूर्व मोहनिय कर्म किया । वह वर्तमानमे उदय होनेपर जीव उच गुणस्थानसे निचे गुणस्थानपर जा सकते है ।
( 30 ) हाँ मोहनिय कर्मोदयसे निचे गुण ० आ सकता है। (प्र०) तो क्या बाटवीर्थसे पंडितवीर्यसे या बालपंडितवायेंगे! (३०) पंडितव ये तथा बार पंडितवीर्थसे निचा नही आ ! किन्तु चालवीयसे उच गुणस्थानसे नित्र गुणस्थान जाये । वाचनास्तर में बापंडित वीर्यमे मो आश कहा है कारण मोहनिय (चारित्र मोहन) कर्मका उदय होने से सबु हुवा भी देश मे भ बहासे फर नीचे के गुम्स्वान आवं, भावार्थ है, इसी पर्कीक मोहनिय उपशमका भी दो सूत्र समझना परन्तु परमागमन पंडि तीर्थसे और निच गुणस्थान बालवीर्य से समझना ।
(२०)
तू । जीव हीन गुणकों प्राप्त करता है वह पावसे करता है या नवसे । (3) आत्मपात्र करके हीन गुप्त करता है ।