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दो समयकि विग्रह करे तो स्यात अनाहारीक होता है। तीसरे ममय स्थात् आहारिक स्यात अनाहारीक अगर कोई जीप दुर्बका श्रेणिकर तीसरे समय उत्पन्न स्थानका आहार लेवे वो स्यात आहारीक है और त्रसनालीके बाहार लोकके अन्तके खुणासे मृत्यु प्राप्तकर प्रथम समय सम श्रेणि करे दुसरे समय बसनालिमें भावे तीसरे समय उर्ध्व दिशामें जावे अगर वहां ही उत्पन्न होना हो तो तीसरे समय आहारीक होता है और उज्वलोककि स्थावर नालिमें उत्पन्न होनेवाला जीव तीसरे समय मी मनाहारी रहेता वह जीव चौथे समय नियमा आहारीक होता है । टोकाकारोंका कथन है कि नगर निचे लोकके चरमान्तसे जेसे जीव मृत्यु करता है इसी माफीक उर्व लौकके चरमान्तके खूणेमें उत्पन्न होनेकि एसी श्रेणि नहीं है वास्ते शास्त्रकारों का फरमान है कि चौथे समय नियमा आहारीक होता है । इति मुच्चय जीव । ___ नारकी आदि १९ दंडक पहले दुसरे समय स्यात् माहारीक स्यात् अनाहारीक तीसरे समय नियमा आहारीक कारण मनालिमें दोय समयकि विग्रह गति होती है और पांच स्थावरों के पांच दंडकमें पहले दुपरे तीसरे समय स्यात आहाराक यात अनाहारिक च थे समय नियमा अहारीक भवना पूर्ववत सपझना ।
(प्र) हे मात्र न् । जीब ससे स्वरुप महारो कीस समय होते है?
(3) जीव उत्पन्न होने पहले समय तथा मरणके अन्त समय मस आहारी होते है । मावार्य भी उत्पन्न होते है उस समय ते नम और कारमाण यह दोय शरीर द्वारा आहारके पुद्गर खेमते