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(३५) . (२) संपराय क्रिया कषाय ओर योगोंकि प्रवृतिसे लगति है। कषाय सद्भावे पहले गुणस्थानसे दशवें गुणस्थानवृत्ति जीवोंको संपराय क्रिया लगती है श्रावक हे सो पांचवे गुणस्थान है वास्ते सामायिक कृत श्रावककों इर्यावही क्रिया नही लागे परन्तु संपराय क्रिया लगती है।
(प्र) हे भगवान् ! क्या कारण है।
(उ) सामायिक कीये हुवे श्रावक कि भात्मा अधिकरण अर्थात् क्रोधमानादि कर सयुक्त है वास्ते उस्कों संपराय किया लगति है। . .
(घ) किसी श्रावकने त्रस जीव मारने का प्रत्याख्यान दिया। और पृथ्व्यादि स्थावर जीवोंकों मारनेका प्रत्याख्यान नहीं है। वह श्रावक गृहकार्यवसात पृथ्वीकाय खोंदतों अगर कोई त्रस जीव मर जावे तों उस श्रावकको व्रतोंके अन्दर अतिचार लगता है ?
(उ०) उस श्रावककों अतिचार नहीं लगे कारण उस श्रावक का संकल्प पृथ्वीकाय खोदनेका था परन्तु त्रसकायकों मारनेका संकल्प नहीं था । हां त्रप्तकाय मर जानेसे त्रसकायका पाप भावश्य लगता है । परन्तु व्रतोंके अन्दर अतिचार नहीं लगते है, 'भावविशुद्धि' इसी माफीक वनस्पति छेदनेका श्रावकको प्रत्यख्यान है और पृथ्व्यादि खोदतों बनास्पतिका मूलादि छेदाय जावे तो उस श्रावकके व्रतोंमे अतिचार नहीं है। भावना पूर्ववत् । ... (५०) कोई श्रावक तथारूपके मुनिकों निर्जीव निर्दोष बसनादि आहारका दान दे उस श्रावकको क्या लाभ होते है ?