Book Title: Shighra Bodh Part 21 To 25
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukhsagar Gyan Pracharak Sabha

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Page 391
________________ . (उ०) श्रावकके दीया हुवा आहारकी साहितासे उस मुनि. को नो समाधि मीली है वह ही समाधि आहारके देनेवाले श्रावकको मीलती है अर्थात् आहारकि साहितासे मुनि अपने आत्मध्यान ज्ञानके गुणोंकों प्राप्ती करते है वह ही आत्मध्यान ज्ञान श्रावककों भी मीलते है । कारण फासुक आहार देनेसे एकान्त निर्जरा होना शास्त्रकारोंने कहा है। । (प.) कोई श्रावक मुनिकों निर्जीव निर्दोष असानादि आहार देता है तो वह श्रावक मुनिकों क्या दिया कहा जाता है ? (उ०) वह श्रावक मुनिकों आहार दीया उसे जीतब दीया कहा जाता है कारण औदारिक शरीरका जीतव आहारके आधार पर ही है और एसा आहार देना (सुपात्रदांन ) महान् दुष्कर है एसा अवसर मीलना भी दुर्लभ है । बास्ते उस.दातार श्रावककों सम्यग्दर्शनके साथ परम्परासे अक्षय पदकि प्राप्ती होती है। इते । सेवं भंते सेवं भंत तमेव सचम् । - थोकडा नम्बर १० सूत्र श्री भगवतीजी शतक ७ उद्देशा ! ( अकर्मीकों गति) (५०) हे भगवान् ! अकर्मीकों भी गति होती है ? (८०) हां गौतम ! अकर्मीको गति होती है। . (५०) हे भगवान् ! कीस कारणसे अकर्मीकों गति होती है ? (उ०) जेसे एक तूम्बा होता है उसका स्वभाव हलकापणा होमेसे पामोपर तीरणे का है परन्तु उसपर मट्टी का लेपकर अतापमें

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