Book Title: Shighra Bodh Part 21 To 25
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukhsagar Gyan Pracharak Sabha

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Page 385
________________ (उ०) जहां तक जीतके भव धारणीय शरीर रहता है वहां तक मातापिताका अंत रहता है, परन्तु समय २ हीन होता जाता है यावत न मरे नहां तक कुछ न कुछ माता पिताका अंस रहता ही है इस लिये माता पिताका कितना उपकार है कि जो जीवित है वह माता पिताका ही है वास्ते माता पिताका उपकार कमी न भूलना चाहिये। (अ) गर्ममें मरा हुवा जीव नरकमें ना सक्ता है ? (3) कोई नीव नरकमें मावे कोई न भी नावे । (प्र) गर्ममें रहा हुवा जीव मरके नरकमें क्यों जाता है ? (उ) संज्ञो पंचेन्द्री सम्पूर्ण पर्याप्ति को प्राप्त करके वीर्यटब्धी वैक्रिय लब्धी जिसको प्राप्त हुई है. वह किसी समय गर्ममें रहा हुवा अपने पिता पर वैरी आया हुवा सुनके वैक्रिय लब्धीसे अपनी आत्माके प्रदेशोंको गर्भसे बाहर निकाले और वैक्रिय समुद्रात करके चार प्रकारकी सेना तयार कर वैरीसे संग्राम करे, और संग्राम करते हुवे आयुष्य पुर्ण करे तो वह जीव मरके नरकमें माता है, कारन उस समय वह जीव राजका, धनका, कामका, मोगका, अर्थका अमिलाषी है इस वास्ते नरकमें जाता है (मागवती सुत्र श० २४ में कहा है कि तिर्यच न० भन्तर मुहर्तवाला और मनुष्य ज० प्रत्येक मासवाला नरकमें जा सक्ता है।) (५) गर्भ में रहा हुवा जीव मरके क्या देवतामें जा सक्ता है ? (उ०) हां देवतामें मी जा सस्ता है। (१०) क्या करनेसे ? • (उ०) पूर्वोक्त संज्ञो पंचेन्द्री वैक्रिप लब्धीवाला तथा हाके

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