Book Title: Shighra Bodh Part 21 To 25
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukhsagar Gyan Pracharak Sabha

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Page 380
________________ (२५) क्रिया करे। एवं प्रणातिपात क्रिया समुच्चय जीव और चौवीस दंडक २५ अलापक हुवे इसी माफीक मृषाबाद, अदत्ता दान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, छोम, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पेशुन, परपराबाद, रति, भरति, माय, मृषाबाद, मिथ्यादर्शन, शल्य एवं १८ पापस्थानकि क्रिया समुच्चयजीव और चौवीस दंडकके प्रत्यक दंडकके जोव करनेसे पंचविसको अठारे गुणा करनेसे ४५० अलापक होते है । इति सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् । . योकडा नम्बर ७ श्री भगवती सूत्र श०१ उ०७ जो जीव जिस गतीका आयुष्य बांधा है और भावी उसी गतीमें जानेवाला है उसको उसी गतीका कहना अनुचित नहीं कहा जाता जैसे मनुष्य तियत्र में रहा हुवा जीव नारकीका आयुष्य बांधा हो उसको भार नारकी कहा जाय तो मो अनुचित नहीं। नारकीय जानेवाला जीव अपने सर्व प्रदेशोंको "स" कहते है और नारकीमें उत्पन्न होने के सम्पूर्ण स्थानको 'सर्व' कहते है वह इस थोकडे द्वारा बतलाया नायगा। (७०) नारकीका नैरीया नारकी में उत्पन्न होते हैं वे क्या (१) देशसे देश उत्पन्न होते है । जीवके एक भागके प्रदेशको दोश कहते हैं और वहां नारकी उत्पन्न स्थानके एक विमागको देश कहते हैं। (२) देशसे सर्व उत्पन्न होते हैं ?

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