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(उ) संयम इस भवमें है शेष पूर्ववत् । संयमका अधिकारी केवल मनुष्य ही है।
(4) हे भगवान् । असंवृत आत्माके धारक मुनि मोक्ष जातेहै? (उ) हे गौतम ! असंवृत अनगार मोक्षमें नहीं जाते है।
(५) कीस कारणसे ? (उ) असंवृत अनगार जो आयुष्यकम छोडके शेष सातकर्म शीतल बन्धे हुवेको घन बन्धन करे । स्वल्प कालकि स्थितिवाले कर्मोकों दीर्घ कालकि स्थितिवाला करे । मंदरसवाले कर्मोकों तीव्र रसवाले करे । और स्वरूप प्रदेशवाले कर्मोको प्रचुर० प्रदेशवाला करे । आयुष्य कर्म स्यात् वान्धे स्यात न भी बन्धे (पूर्व बन्धा हुवा हो) असाता वेदनिय कर्म वार वार बन्धे और जिस संसारकि आदि नहीं और अन्त भी नहीं एसा संसारके अन्दर परिभ्रमन करे इस बास्ते असंवृत मुनि मोक्ष नहीं जासक्ते है। ..
(अ) हे भगवान्। संवृत आत्मा धारक मुनि मोक्षमें जासक्त है ? (उ) हां गौतम । संवृत आत्मा धारक मुनि मोक्षमें जासक्त है। (५) क्या कारण है ?
(उ) संवृत मात्मा धारक मुनि आयुष्य कर्म वर्जके सात कर्म घन बन्धा हुबा होते उसकों शीतल करे । दीर्घ कालकि स्थितिको स्वल्प काल करे। तीव्र रमको मंद रस करे । प्रचुर प्रदेशोंको स्वल्प प्रदेश करे मसाता वेदनी नहीं बान्धे । आदि मन्त रहीत जो 'दीर्घ रस्तेवाला संसार समुद्र शीघ्रता पूर्वक तीरके
१ पांच इंद्रियों और मनद्वारा भाता हुआ भारद्वारोंका निरुत नहीं कीया है।