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(१४)
देवता में भी ज्ञान विषय तत्व विषय चर्चा वार्तायों होती रहती हैं। वास्ते तीनों स्थानपर ज्ञान होते है ।
(प्र) हे भगवान् ! दर्शन ( सम्यक्त्व) हे सो इसी भवमें है ! पर भवमें है ? तथा उभय भवमें है ?
( उ ) हे गौतम! दर्शन इस भवमें भी
होते है । परमवमें भी होते है । उभय भवमें भी होते है। भावार्थ - इस भवमें सुनियोंकि देशना श्रावणकर तत्व पदार्थकों जाननेसे दर्शन कि प्राप्तो होती है पर भवमें भी बहुतसे मिथ्यात्वी देवता चर्चा वार्ता करते हुवे दर्शन प्राप्ती कर सके है तथा इस भवमें दर्शन उपार्जन कीया हुवा पर भवमें साथ भी ले जासक्ते है ।
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(प्र) हे भगवान्। चारित्र ( निवृतिरूप ) इस भवमें है ? पर मवमें है ? उभय भवमें हैं ?
( उ ) हे गौतम चारित्र हे सो इस भवमें है परन्तु परभवमें नहीं है और यहां परभव साथमें भी नहीं चल सक्ता है अर्थात् मनुष्यके सिवाय देवादि गतिमें चारित्र नहीं होते है ।
(प्र) हे भगवान्। तप हे सो इस भवमें होते है ? परभवमें हैं । उभय भवमें है
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(उ) तप है सो इस भवमें होते है परन्तु परभवमें तथा उभय भवमें नहीं होते है पूर्ववत् नमुकारसी आदि तपश्चर्या मनुष्यके भवमें ही हो सक्ती है ।
(प्र) हे भगवान् । संयम ( पृथ्व्यादिका संरक्षणरूप १७ प्रकार ) इस भवमें है यावत् उभय भवमें है ?