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(६) छेदाते हुँको छेचा, तेरेबै गुणस्थान रहे हुवे कोंकि स्थितिकी घात करते हुवे योग निरूद्ध करते है।
(६) भेदते हुवेको मेघा=यह रसधातकि अपेक्षा है परन्तु स्थिति घात करतों रसघात अनन्तगुणी है वास्ते भिन्नार्थी है।
(७) दहन करते हुवेको दहन किया-यह प्रदेश बन्धापेक्षा है। पांच ह्रस्व अक्षर कालमे शुक्लव्यान चतुर्थ पाये कर्म प्रदेशका दहानापेक्षा होनेसे यह पद पूर्वसे भिन्नार्थी है।
(१) मृत्यु होतेको मूर्या कहना. यह पद आयुष्य कर्मापेक्षा है। आयुष्य कर्मके दलकक्षय जो पुनर्जन्म न हो एसे चरम आयुष्य सय अपेक्षा होनेसे यह पद पूर्वसे भिन्नार्थी है।
(९) निर्जरते हुवेकों निर्जर्या कहेना-सकल कोका क्षयरूप निर्जर पूर्वे कवी न करी हुई चौदवे गुणस्थानके चरम समय २ सकल कर्मक्षयरूप होनेसे यह पद पूर्वके पदोंसे भिन्नार्थी है। . __इस वास्ते पेहलेके च्यार पद एकार्थी और शेष पांच पद भिमा है। .
.. .. - सेवं भंते सेवं भंत तमेव सचम् ।
थोकडा नम्बर २. सूत्र श्री भगवतीजी शतक ! उद्देशा १
(४९ द्वार) इस थोडेके ४५ द्वार चौवीस दंडक पर उतारा जावेगे, चौबीस दंडकमें प्रथम नारक्केि दंडकपर ४५ द्वार उतारे जाते हैं।