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(८) नारकि जो पुद्गल आहारपणे ग्रहन किया है वह सर्व पुद्गलोका ही आहार करते है न कि देशपुद्रलोका ।
(९) नारकि जो आहार करते है वह पुद्गल उसके श्रोतेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रियपणे अनिष्ट अक्रन्त अपय अमनोज्ञा माक्त दुःखपणे परिणमते है ।
नोट- आहारपदका थोकडा सविस्तार शीघ्रबोध भाग तीजा में ११ द्वारसे लिखा गया है यहांपर सप्रयोजन शास्त्रकारोंने सात द्वारोंकों ही ग्रहन किया है वास्ते विस्तार देखनेवालोंकों तीमा भागसे देखना चाहिये ।
(१०) नारकिके आहार विषय प्रश्न |
(१) आहार किये हुवे पुद्गल प्रणम्या या प्रणमेगा । (२) आहार किया और करते हुवे पु० प्रणम्या या प्रणमेगा । (३) आहार न किया और करते हुवे पु० प्रणम्या या प्रणमेगा | (४) आहार न किया और न करे पु० प्रणम्या या प्रणमेगा । इस प्यारों प्रश्नोंक उत्तर
(१) आहार किये हुवे पु० प्रणम्या न प्रणमेगा । (२) आहार किया और करते हुवे पु० प्रणम्या प्रथमेगा । (१) आहार न किया और करते हुबे पु० न प्रणम्या प्रणमेगा! (४) आहार न किया न करे वह न प्रणम्या न प्रणमेगा ।
इसपर टीकाकारोंने छ पद किया है (१) माहार किया (२) फरे (१) करेगें (४) न किया (५) न करे (१) न करेगें। इस छे पदक ६१ विकरूप होते है यथा