________________
( ६ )
(१) स्थितिद्वार नारकिके नैरियोंकि स्थिति जघन्य दश हजारवर्ष उत्कृष्ट तेतीस सागरोपमकि है !
(२) साश्वोसाश्वद्वार - नार किके नैरिया निरन्तर सावोसाश्व लेते सो भी लोहारकि घामणकि माफीक शीघ्रतासे ।
(३) आहार = नारकिके नेरिये आहारके अर्थी हैं ? हां आहारके अर्थी है ।
(४) नार किके नैरिये आहार कितने काळसे लेते है ? नारकिके आहार दो प्रकारका है ( १ ) अनजानते हुवे (२) जानते हुवे जिसमे जो अनजानते हुवे आहार लेते है वह प्रतिसमम आहारके पुलोंकों महन करते है और जो जानके आहार लेते है वह असंख्यात समय अन्तर महुर्तसे नारकिकों आहार क इच्छा होती है । (५) नारकि आहार लेते है सो कोणसे पुद्गलोंका लेते है ! द्रव्यापेक्षा अनन्ते अनन्त प्रदेशी स्कन्ध, क्षेत्रापेक्षा असंख्याते आकाश प्रदेश अवगाह्या, कालापेक्षा एक समयकि स्थिति यावत् असंख्याता समयकि स्थिति के पुद्गल, भावापेक्षा वर्ण गंध रस स्पर्श यावत् २८८ बोल देखो शीघ्रबोध भाग तीजा आहारपद ।
(६) नारक आहारपणे पुद्गल लेते है वह क्या सर्व आहार करे, सर्व परिणमे, सर्व उश्वासपणे परिणमावे, सर्व निश्वासपणे एवं वारवारके ४ एवं कदाचीत्के ४ सर्व ११ बोलपणे परिणमे !
(७) नारकि अपने आहारपणे लेने योग्य पुद्गल है जीस्के असंख्यात भागके पुद्गलोंकों ग्रहन करते है और ग्रहन किये हुवे कोंमें अनन्तमे भागके पुद्गलोंको अस्वादन करते है ।