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(१) चलन प्रारंभ समयकों चलीया केहना स्थिति क्षयापेक्षा है। . (२) उदीरणा प्रारंभ समयकों उदीरिया कहना=नो कर्म सतामें पडा हुवा है परन्तु उदयावलिकामें आनेयोग्य है उस कर्मा कि मध्यवसायके निमित्तसे उदीरणा करते है । उदीरणा करतेंकों मसंख्यात समय लगते है परन्तु यहां प्रारंभ समयको पूर्वके दृष्टांत माफोक समझना चाहिये। ..
(३) वेदते हुवेके प्रारंभ समयकों वेद्या कहना। जो कर्म उदय आये हो तथा उदीरणा कर उदय आविलकामें लाके प्रथम समय वेदणा प्रारंभ कीया है उसको पूर्व दृष्टांत माफीक वेद्या ही कहेना।
(४) प्रक्षिण अर्थात् कामप्रदेशों के साथ रहे हुवे कर्म दलक मात्मप्रदेशोंसे प्रक्षिण होनेके प्रारंभ समयको प्रक्षिण हुबा पूर्व द्रष्टांत माफीक कहना।
(५) छेदते हुवेकों छेदाया-कर्मोकि दीर्घकालकि स्थितिकों अपबतन करणसे छेदके लघू करना वह अपवर्तन करण असं. ख्याते समयका है परन्तु पूर्व द्रष्टांत माफीक प्रारंभ समयकों छेद्या कहना।
(६) मेदते हुवेकों भेया कहना-कोके तीव्र तथा मंद रसको अपवर्तन तथा उघवसनकरण करके मंदका तीव्र और तीवकी मंद करना यह करण असंख्याते समयका है परन्तु पूर्व द्रष्टांत माफक प्रारंभ समय भेदते हुवेको भेद्या कहना। ।
(७) दहते हुवेको दहन कहेना। यहां कर्मरूपी काष्टकौ शुक्ल ध्यानरूपी अग्निके अन्दर दहन करते हुवेकों पूर्व शेतकी माफोक बहन किया ही कहना।