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बनाया हो, इधर उधर लाते, ली जाते हो, जिसका रुप ही अदर्शनीय है. जहांपर ऐसा कार्य हो रहा है, उसीकी तर्फ जानेकी अभिलाषा, पिपासा, इच्छा ही साधुवों को न करनी चाहिये. अगर करे, करावे, करतेको अच्छा समझे. वह मुनि प्रायश्चित्तका भागी होगा. कारण-वह जातेमें लोगोंको शंकाका स्थान मिलेगा.
(१८६) , देवोंको नैवेद्य चढाने के लीये, जो अशनादि आहार तैयार कीया है, उसकी अन्दरसे आहार ग्रहन करे. ३ यह लोकविरुद्ध है. कदाच देवता कोपे तो नुकशान करे.
(१८७ ) ,, जो कोइ साधु साध्वी जिनाज्ञा विराधके अपने छंदे चलनेवाले है, उसकी प्रशंसा करे. ३
(१८८) ऐसे स्वच्छंदे चलनेवालोंको वन्दे. ३ इसीसे स्वच्छंदचारीयोंकी पुष्टि होती है.
( १८९ ) ,, साधुवोंके संसारपक्षके न्यातीले हो, अ न्यातीले हो, श्रावक हो, अन्य गृहस्थ हो, परन्तु दीक्षाके योग्य न हो, जिसमें दीक्षा ग्रहन करनेका भान भो न हो, ऐसा अपात्रको दीक्षा देवे. ३
भावार्थ-भविष्यमें बडा भारी नुकशानका कारण होता है.
( १९० ,, अगर अज्ञातपनेसे ऐसे अपात्रको दीक्षा दे दी हो, तत्पश्चात् ज्ञात हुवा कि-यह दीक्षाके लीये अयोग्य है. उसको पंचमहाव्रतरुप वडोदीक्षा देवे. ३
( १९१ ) अगर वडोदीक्षा देने के बाद ज्ञात हो कि-यह संयमके लीये योग्य नहीं है. ऐसेको ज्ञान, ध्यान देवे, सूत्रसिद्धांतकी वाचना देवे, उसकी चैयावच्च करे, साथ में एक मंडले. पर भोजन करे, करावे, करतेको अच्छा समझे. भावना पूर्ववत्.