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वेदे इति.३३वां शतकके भन्तर शतक १२ और उदेशा १२४ इति तेतीसवा स्तक समाप्त। . .. . सेवं भंते सेवं भंते तमेव सचम् ।
थोकडा नं० ११ सूत्र श्री भगवतीजी शतक ३४वां
(श्रेणिशतक) : इस आरापार संसारके अन्दर जीव अनादि कासे एक स्यानसे दुसरे स्थानपर गमनागमन करते है एक स्थानसे दुसरे स्थानपर जानामें कितने समय लगते है यह इस योन्डा द्वारा बतलाया जायगा।
(घ) हे मगवान् । एकेन्द्रिय कितना प्रकारकि है।
(उ) पृथ्व्यादि पांच स्थावर सूक्ष्म पांच स्थावर बादर इन्ह दशोंका पर्याप्ता अपर्याप्ता एवं एकेन्द्रियका १० भेद है।
(१) रत्नप्रभा नरकके पूर्वका चरमान्तसे सुक्ष्म पृथ्वीकायके अपर्याप्ता जीव मरके, रत्नप्रपा नरकके पश्चमके चरमान्तमें सूक्ष्म पृथ्वीकायके अपर्याप्तापणे उत्पन्न होता है उसको रहस्तेमें १.२.३ समय लगता है, इसका कारण यह है कि शास्त्रकारोंने सात प्रकारकि श्रेणि वतलाइ है यथा=(१) ऋजुश्रेणि ( समश्रेणि ) (२) एको बङ्का (३) दोवका (४) एक कोनावाली (५) दोयकोनावाली (६) चक्रवाल (७) अर्द्धचक्रवाल । जिसमें जीव ऋजुश्रेणि करते हुवेको एक समय लागे एको वका श्रेणी करनेसे दोय समया दो