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(४९) (२) दुसरा शतक कृष्ण लेशीका है वह प्रथम शतककि माफीक इग्यारा उदेशा कहना परन्तु नाणन्ता तीन है (१) लेश्या एक कृष्ण (२) अनुबन्ध ज० एक समय उ० अन्तर महुर्त (३) स्थिति ज० एक समय उ० अन्तर महुर्त शेष इग्यारा उदेशा प्रथम शतक माफीक परन्तु यहां देवता सर्वत्र नहीं उपजे । १-३-५ साहश शेष काठ उदेशा सादृश है इति ३९-२
(३) एवं निल लेश्याका शतकके उदेशा ११ (१) एवं कापोत लेश्या शतकके उदेशा ११
इस्में लेश्या अपनि अपनि और स्थिति अनुबन्ध कृष्णकि माफीक इति पैतीसवां शतकका च्यार अन्तर शतक ४४ उदेशा हुवा। . . ____ जेसे ओघ शतक और तीन लेश्याका तीन शतक कहा है इसी माफीक भव्य सिद्धि जीवों का भी च्यार शतक समझना पान्तु यहां सर्व नीवादि मव्य एकेन्द्रियपणे उत्पन्न नहीं हुवा है। कारण सर्व जीवोंमें अभव्य जीव मी सेमल है । शेषाधिकार पहले के च्यार शतक सादृश है इति ३५-८ __जेसे भव्य सिद्धि जीवोंका लेश्या संयुक्त च्यार शतक कहा है इसी माफीक च्यार शतक अभव्य सिद्धि जीवों का भी समझना इति ३९-१२-१३२ पैतीसवां शतकके अन्तर शतक बारहा उदेशा एक सौ वत्तीप्त समाप्तं ।
सेवं भंते सेवं भंते तमे वसच्चम् ।