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(५८) (२) कृण लेश्याका दुसरा शतक महायुम्मा १६ प्रकारके है प्रथम कडयुम्मा कडयुम्मा परद्वार ।
(१) उत्पात. मनुष्य तीयंचसे तथा नारकी देवता पर्याप्त कृष्ण लेशीसे आके सज्ञो पांचेन्द्रिय कड• कड० कृष्णलेशीये उत्पन्न होते हैं।
(२) बन्ध, उदय, उदिरणा, वेदे, एकेन्द्रिवत् (३) लेश्या-एक कृष्ण लेश्या (४) बन्धक-सात आठ कर्मोका बन्धक है (५) सज्ञा, कषाय, वेद, बन्धक, एकेन्द्रियवत्
(६) अनुबन्ध. ज. एक समय उ० ३३ सागरोपम अन्तरं महुर्त अधिक
(७) स्थिति-ज० एक समय उ० ३३ सागरो.
शेष १९ द्वार ओघ उदेशा माफोक समझना. एवं शेष १५ महायुम्मा भी केहना. एवं प्रथम समयादि ११ उदेशा ओघ शतकके माफीक नाणन्ते संयुक्त और १-३-५ यह तोन उदेशा सादृश शेष आठ उदेशा साहश इति ४०-२-२२
(३) एवं निललेश्याका इग्यारा उदेशा संयुक्त तीरा अन्तर शतक है परन्तु अनुबन्ध ज• एक समय, उ० दश सागरोपम पस्योपमके असंख्यात भाग अधिक एवं स्थिति भी समझना इति
(४) एवं कापोत लेश्याका इग्यारा उदेशा संयुक्त चोया अन्तर शतक परन्तु अनुबन्ध ज० एक समय उ० तीन सागरोपम पल्योपमके असंख्यातमा भाग आधिक एवं स्थिति भी समझना इति ४०-४-४४