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(६८) - (२) गणतानुयोग-जिस्में क्षेत्रका लम्बा पना चोड पना उर्ध्व अधो नदि द्रह पर्वत क्षेत्रका मान देवलोकके वैमान नारकोके नरका वास तथा ज्योतीषी देवोंका वैमान ज्योतीषीयोंकि चाल ग्रह नक्षत्रका उदय अस्त समवक्र होना तथा वर्ग मूल धन आदि फलावट इसकों गणतानुयोग कहते है।
(३) चरण करणानुयोग-जिस्में मुनिके पांच महाव्रत पांच समिति तीन गुप्ती दश प्रकार यति धर्म, सत्तरा प्रकारका संयम बारहा प्रकारका तप पचवीस प्रकारकि प्रतिलेखन गौचरीके ४७ दोषन इत्यादि तथा श्रावकोंके बारहव्रत एकसो चौवीस अतिचार इग्यारा प्रतिमा पूजा प्रभावना सामि वत्सल सामायिक पौषद आदि क्रियावों है उसे चरण करणानुयेण कहते है।
(४) धर्मकथानुयोग-जिस्में भूतकालमें होगये जैन धर्मके प्रभावीक पुरुष चक्रवर्त बलदेव वासुदेव भंडलोक राना सामान्य राजा सेठ सेनापति आदिका जो जीवन चारित्र तथा न्याय नीति हेतु युक्ति अलंकार आदिका व्याख्यान हो उसे धर्म कथानुयोग कहते है।
इस च्यार अनुयोगमें द्रव्यानुयोग कार्य रूप है शेष तीनानुयोग इसके कारण रूप है इस प्रभावशाली पञ्चमाङ्ग भगबती सूत्रमें च्यारों अनुयोग द्वारोंका समावेस है तद्यपि विशेष भाग द्रव्यानुयोग व्याप्त है इसी लिये पूर्व महाऋषियोंने द्रव्यानुयोगका महानिधिकी औपमा भगवती सूत्रको दी है।
(१) भगवती सुत्रके मूल श्रुतस्कन्ध एक है (२) भगवती सूत्रके मूल शतक ४१ है ।