________________
(४०) मनुष्य डोकका बादर तेउ कायके पर्याप्ता पर्याप्ता मनुष्य लोकमें होतो १-२-३ समय लागे कुल पूर्ववत् ४०० माग इसी माफीक उत्पन्न उर्ध्व लोककि स्थावर नालोके जीव मरके अघोलोककि स्थावर नालीमें उत्पन्न हुवे जीस्का मी पूर्ववत् ४०० माग हुवे यहां तक ११२००-४००-४००-१२००० माग हुवे।
लोकके चरमान्तमें पांच सुक्ष्म स्थावरके पर्याप्ता अपर्याप्ता एवं १० तथा बादर वायुकायके पर्याप्ता अपर्याप्ता भोलाके १२ बोल पावे ।
लोकके पूर्वके चरमान्तरसे मुक्ष्म पृथ्वी कायका अपर्याप्त मरके लोकके पूर्वके चरमान्तमें सूक्ष्म पृथ्वी कायके अपर्याप्तपणे उत्पन्न होतो विग्रह गतिका १-२-३-४ समय लागे । कारण समश्रेणि एक समय, एक वङ्काश्रेणि दो समय, दो वङ्का श्रेणि तीन समय ( पूर्ववत् ) जो अबोलोकके पूर्वके चरमान्तसे प्रथम समय समश्रेणिकर अप्नालीये आवे दुसरे समय उवलोकमें जावे तीसरे समय उर्वलोकके पूर्वके चरमान्तमे जावे परन्तु वह अलौकके प्रदेशो कि विषमता हो तो चोथे समय उत्पन्न स्थानपर जा उत्पन्न होवे वास्ते च्यार समय तक मी लागे। एवं बारहा बोलों पणे उत्पन्न हो तो १-२-३-४ समय लागे बोल १४४ हुवा।
१४४ पूर्व चरमान्तसे पूर्वके चरमान्तका वि० १-२-३-४ ___, , , दक्षिण , "
__ " " , पश्चिम __.. , उत्त! "
, दक्षि चरमन्प्रसे पूर्व चरमान्तका