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२८७ ५६ सूत्र. एवं साध्वी साध्वीयोंके पाव अन्यतीर्थी गृहस्थोसे दबावे, चंपावे, मसलावे. यावत् तीसरे उदेशा माफिक ५६-५६ बोल कहेना, च्यार अलापकके २२४ सूत्र कहना. कुल २३९.
भावार्थ-साधु या साध्वी, कोइ भी कोशीश कर अन्यतीर्थी तथा उन्होंके गृहस्थोंसे साधु, साध्वीयोंका कोई भी कार्य नहीं कराना चाहिये. कारण-उन्होंका सर्व योग सावध है. अयतनासे करनेसे जीवविराधना हो, शासनकी लघुता, अधिक परिचय, उन्होके प्रत्ये पीछा भी कार्य करना पडे, इसमें भी राग, द्वेषकी प्रवृत्ति बढे इत्यादि अनेक दोषोंका संभव है. वास्ते साधुवोंको निःस्पृहतासे मोक्षमार्गका साधन करना चाहिये.
(२४० ) ,, अपने सदृश समाचारी, आचार व्यवहार अ. पने सरीखा है, ऐसा कोइ ग्रामान्तरसे साधु आये हो, अपने ठेरे है, उस मकान में साधु, उतरने योग्यस्थान होने परभी उस पाहुणे साधुकों स्थान न देवे. ३
( २४१ ) एवं साध्वीयों, ग्रामांतरसे आइ हुइ साध्वीयोंको स्थान न देवे, ३०
भावार्थ-इससे वत्सलताकी हानि होती है, लाकोंको धमसे श्रद्धा शिथिल पडती है, द्वेषभावकी वृद्धि होती है. धर्मस्ने. हका लोप होता है. __(२४२) ,, उंचे स्थानपर पड़ी हुइ वस्तु, तकलीफसे उतारके देवे, ऐसा अशनादि वस्तु साधु ले वे. ३
( २४३) भूमिगृह, कोठारादि नीचे स्थान में पडी हुइ वस्तु देवे. उसे मुनि ग्रहन करे. ३
(२४४ ) कोठी, कोठारादि अन्य स्थानमें वस्तु रख, लेगादि कीया हो, उसको खोलके वस्तु देवे, उसे मुनि लेवे. ३