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(३७) र २० द्वारमें जो तफावत है से बोध गमा तीन १-१-३ समुच्चयवत् । जघन्य गमा तीन ४-५-६ नाणन्ता तीन तीन (१) अवगाहाना ज० उ० प्रत्यक हाथकि (२) आयुष्य० ज० उ० प्रत्यक वर्षका
(३) अनुवन्ध ज० उ० प्रत्यक , .. है उत्कृष्ट गमा तीन नाणन्ता तीन तीन ... .. - (१) अवगाहाना ज० उ० पांचसो धनुष्यकि
(२) आयुष्य ज० उ० कोडपूर्वका : (३) अनुबन्ध ज० उ० कोडपूर्वका ।
इति नारकिका प्रथम उद्देशो समाप्तम् । .. (२) असुरकुमार देवताका दुसरा उद्देशा।
असुरकुमारके स्थानमें पांच संज्ञी तीर्यच, पांच असंज्ञी विंच और एक मनुष्य एवं ११ स्थानों के पर्याप्ता आते है। ..(१) मसंज्ञी तीर्यच जेसे रत्नप्रभा नरकमें काहा है इसी फीक नौगमा और ऋद्धिके २० द्वार यहांपर भी केहना परन्तु हाँ पर अध्यवसाय प्रसस्थ समझना। . :(२) संज्ञी तीयेच पांचेन्द्रिय असुरकुमारमें उत्पन्न होते है
दोय प्रकारके है। . . .: (१) संख्याते वर्षवाले (२) मसंख्याते वर्षबाले । जिस्में लम असंख्याते वर्षवाले संज्ञी तीर्यच पर्याप्ता असुर कुमारमें ज०
हजार वर्ष उ० तीन पल्योपमकि स्थितिमें उत्पन्न होते है सपर ऋद्धिक २० द्वार।
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