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मन
काक
जाम
जा उ० भव
ज० उत्कृष्ट काल
असंख्या० काल
च्यार स्थावरमें बनास्पतिमें वैकलेन्द्रिय तीर्थच पांचेन्द्रिय मनुष्यमें
!२ असंख्य २ अनन्ता
संख्यात २ आठ
भाठ
दोय अन्तरमहुर्त
अनन्त० , संख्यात° ,
प्रत्यक (कोडपूर्व
(२८) आहाग्द्वार-२८८ बोलोका आहार देते है। (२९) स्थितिद्वार-ज० अन्तरमहुर्त उ० प्रत्यक वर्षकि । (३०) समुदघात-वेदनि, मरणंति, कषाय एवं तीन । (३१) मरण-समोहीय, असमोहीय दोन प्रकारसे । (३२) गतिद्वार-मरके ४९ स्थानमें जाते है पूर्ववत ।
(प्र) हे भगवान् सर्व प्राणभूत जीव साव, शालीके मूलपणे पर उत्पन्न हुवे ? ___हां गौतम, एक वार नही किन्तु अनन्ती अनन्ती वार उत्पन्न हवे है । इति ।। । जेसे यह शालीके मूलका पहला उदेशा कहा है इसी माफीक
चालीके कन्द उदेशा, स्कन्धउदेशा, स्वचाउदेशा, साखाउदेशा, पखाल उदेशा, और पत्रउदेशा एवं सातउदेशा साहश है सबपर ११-३२ द्वार उत्तारना।
आठवां पुष्प उदेशामें जीव ७४ स्थानोंसे आते है जिस्म १९ तो पूर्व कहा है, दशभुवनपति, आठव्यन्तर, पांच ज्योतीषी,