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(२७)
(१) स्तोक सूक्षम संपराय संयमवाले । (२) परिहार विशुद्ध संयमवाले संख्याते गुने । (३) यथाख्यात संयमवाले संख्यातगुने । . (१) दोपस्थातिप संयमवाले संख्यात गुने । (५) सामायिक संयमवाले संख्यात गुने । सेवं भंते सेवं भंते तमेवसच्चम् ।
थोकडा नंबर ७ सूत्र श्री भगवतीजी शतक २५ उद्देशा ८
(५) हे मगवान् मनुष्य तीर्यचसे मरके नरकमें उत्पन्न होनेनाला नीव नरकमें की तरहसे उत्पन्न होता है।
(उ) हे गौत्तम-जेसे कोइ मनुष्य सपघाडासे भ्रष्ट हुवा पुनः उस सथवाडाकों मीलनेकि अमिळाषा करता हुआ, एमा ही अध्यवसायका तीव्र निमत योगोके करणसे भातुरतासे चलता हुआ पीछछे स्थानका त्याग कर आगेके स्यानकि अमिहाषा काता हुवा उस सबाडासे मीलके उसे स्वीकार कर विचरता है। इसी माफाक' जीव मनुष्य तया तीर्थचके आयुष्य दलको क्षयकर भरीर त्यागकर परगतिमें गमन करते है उस समय के हो वेगसे अव्यवसायोंका निमत्त कारमण योगकि आतुरतासे शीघ्रता पूर्व चलता हुवा नरकके अस्पती स्थानको स्वीकार कर विचरता है।
(५) हे भगवान जेसे कोई युवक पुरुष विज्ञानचन्त हायकि बाहु सारे संकोच करे हापकि मुठो खोळे, बंध करे, आंखकोमीचे खोले, इतनी देर नरकमें उत्पन्न होते नीवको लागे ।