________________
(३०) प्रयोगसे उत्पन्न होते है । इसी माफीक सातों नरके समझेना परन्तु आगतिको स्थान इस माफ की है।
(१) रत्नप्रभाके भागतिके स्थान ११ है (२) शार्कर प्रमाके , , ६ मसंज्ञो तीर्यच वमें (३) वालुका प्रमाके , , ५ मनपर वर्षे . (४) पङ्कप्रमाके
, ४ खेचर वजे (५) धूम्रप्रमाके , , ३ स्थलचर वनें (१) तमप्रभाके , , २ उरपुर व (७) तमतमाके , १ पूर्ववत स्त्रि में एवं तेयुगा युग्गा परन्तु परिमाण ३-७-११-१५ सं० म० एवं दार युम्मा , .. १-६-१०-११ ,, , एवं कलउगा , , , १-५-९-१३ ,,
यह ओव ( सामान्य ) सूत्र हुवा भव विशेष कहते है कि कृष्णलेशी नारकी पांचवी, उठी, सातवी, पूर्वोक्त च्यार युग्म तीनों नरकपर लगा देना एवं निलेशी परन्तु नरक, तीजी चोषी
और पांचवी शेष ओघवत् एवं कापोत लेशी परन्तु नरक पहली दुसरी तीसरी शेष मोघवत् एक समुच्चय और तीन लेश्याके तीन एवं च्यार उदेशा हुवे इस्को ओष उदेशा कहते है इति च्यार उदेशा।
१ एवं मत्र्य सिद्धि जीवोंका भी लेश्या संयुक्त च्यार उदेशा। एवं ममव्य जीवों का भी लेश्या संयुक्त च्यार उदेशा । एवं सम्य. ग्द्रष्टी जीवोंका मी लेश्या संयुक्त च्यार उदेशा, परन्तु कृष्णा लेश्या धिकारे सातवी नरक में सम्यग्द्रष्टी जीवोंकि उत्पात निषेद है।