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(१) सुदा० संज्वलनके लोमो और यारूपात ० उपशान्त माय और क्षिण थायमें भी होता है।
(१९) लेक्ष्या-सामा० छेदो० में छेओं लेश्ण, परिहार तेनों पद्म शुक्ल तीनळेश्या, सूक्ष्म० एक शुक्ल, यथाख्यात. एक शुक्ल तथा मलेशी मी होते है।
(२०) परिणाम-सामा० छेदो० परिहार में हियमान० वृद्धमान और अवस्थित यह तीनों परिणाम होते है । निस्में हियमान वृद्धमानकि स्पिति ज. एक समय उ० अन्तर महूत और भास्थितकि न० एक समय उ० सात समय० । सूक्ष० परिणाम दोय हियमान वृद्धमान कारण श्रेणि चढते या पडते जीव वहां रहेते है उन्होंकि स्थिति ज०. उ० अन्तर महुर्तकि है । यथाख्यात. परिणाम वृद्धमान, अस्थित निमें वृद्धमानकि स्थिति न० ३० अन्तर महुर्त और अवस्पितकि न० एक समय उ० देशोनाकोड 4 ( केबलीकि अपेक्षा ) द्वारम् । __ (२१) बन्ध-सामा० उदो० परि० सात तथा पाठ कर्म मधे सात बन्धे तो आयुष्य नहीं बन्छ । सुक्ष्म० आयुष्य० मोहनिय कर्म वजेके छे कर्म कन्धे । यथाख्यात. एक साता वेदनिय मधे तया भवन्ध ।
(२२) वद-प्रथमके च्यार संकम बाठों कर्म वेदे। यथाव्यात. मात्रा ( मोहनि वर्ग) मे वो तथा च्यार मनातीया कर्म वेद ।
(२३) उदिरणा-सामा• उदो० परि०. ७-८-६ कर्म