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योक्डा नम्बर ३ श्री भगवती सूत्र शतक २३
(वर्ग पांच ) . . . .. इस तेवीसवां शतकके पांच वर्ग निस्के पचास उदेशा है इस शतक में अनन्त काय साधारण वनारसतिका अधिकार है साधारण बनास्पतिकायमें जोव अनन्त कालतक छेदन, मेदन, महान् दुःख. सहन किया है वास्ते इस शतकके प्रारम्भमें " नमो मुयदेवयारा मगवईए " सुत्र देवता भगवतीको नमस्कार करके (१) आलुबर्ग (२) लोहणी वर्ग (३) आवकाय वर्ग (४) पाठमि आदि वर्ग (५) मासपनी आदि बर्ग कहा है। (१) आलु मूला आदो. हलदी
आदिके वर्गका दश उदेशा वास उदेशाकि माफीक है परन्तु परिमाण द्वारमें १-२-३ यावत् संख्याते असंख्याते अनन्ते उत्पन्न होते है समय समय एकेक जीव निकाले तो अनन्ती सपिणि, उत्सपिणि पुर्ण होजाय । स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अंतर महुर्तकि शेष वासवर्गवत् समझना इति प्रथम वर्ग दश उदेशा समाप्तम् ।
(२) लोहनि असकन्नी, बज्रन्नो, आदिका वर्गके दश उदेशा, आलुबर्गके माफोक परंतु अवगाहाना तालवर्ग माफीक समझना इति समाप्तम् ।
(३) आयकाय कहुणी आदि जमीकन्दकी एक जाति है इसके भी १० उदेशा आलुवर्ग माफीक है परंतु अवगाहाना ताल वर्ग:माफीक समझना इति तीसरा वर्ग समाप्तम् ।
(४) गादमिर नाल के मधुरसाणा मादि० मोकंदकि एक